यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।
नये वर्ष की अँखियाँ भीगी, बीती जून जुलाई में।।
*
हिचकी आयी भोर भये से,ना रुकने का नाम लिया।
तभी पुरानी राहों ने फिर, सोचा किसने याद किया।।
पलपल, पगपग जाने कितने, रंगो को था नित्य जिया
कई सूरतें उभरीं मन में, गठरी को जब खोल दिया।।
*
चुपके-चुपके नभ रोया नित, शरद भरी जुन्हाई में।
यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।।
*
कितना चाहो भले भूलना, हिर फिर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 12, 2023 at 5:42am — No Comments
पग की गति हो चाहे मन्थर।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
सूनापन हो या निर्जन हो।
तमस भले ही बहुत सघन हो।।
विचलित थोड़ा भी ना मन हो।
मत पाँवों में कुछ अनबन हो।।
*
शूल चुभें या कंकड़ पत्थर।।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
जो भी इच्छित क्यों सपना हो।
चाहे जितना भी खपना हो।।
हर नूतन पथ बस अपना हो।
धैर्य न डोले जब तपना हो।।
*
मत करना जीवन में अन्तर।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
अंतिम परिणति जैसी भी हो।
जीवन से …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 10, 2023 at 12:24pm — No Comments
रूठे हो बहनों से या फिर, मद में अपने चूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
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जल भरकर थाली में माता, हमको तुमसे भले मिलाती।
किन्तु काल्पनिक भेंट हमें ये, थोड़ा भी तो नहीं सुहाती।।
हम बच्चों की इच्छा खेलें, यूँ नित चढ़कर गोद तुम्हारी।
लेकिन तुमको भला बताओ, कब आती है याद हमारी।।
*
कौन काम से निशिदिन इतने, हो जाते मजबूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
*
हमको भी तुम जैसा भाता, ये लुका छिपी का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2023 at 11:07am — 2 Comments
जिस वसंत की खोज में, बीते अनगिन साल
आज स्वयं ही आ मिला, आँगन में वाचाल।१।
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दुश्मन तजकर दुश्मनी, जब बन जाये मीत
लगते चहुँ दिश गूँजने, तब बसन्त के गीत।२।
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आँगन में जिस के बसा, बालक रूप वसन्त
जीवन से उसके हुआ, हर पतझड़ का अन्त।३।
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कहने को आतुर हुए, मौसम अपना हाल
वासन्ती संगत मिली, हुए मूक वाचाल।४।
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करने कलियों को सुमन, आता है मधुमास
जिसके दम पर ही मिटे, हर भौंरे की प्यास।५।
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आस बँधा कर पेड़ को, हवा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2023 at 1:00pm — 3 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
दो तनिक मुझ मूढ़ को भी ज्ञान अब माँ शारदे
चाहता हूँ मारना अभिमान अब माँ शारदे।१।
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आ गया देखो शरण में शीश चरणों में पड़ा
भाव पूरित शब्द दो अभिदान अब माँ शारदे।२।
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यूँ असम्भव है समझना ईश के वैराट्य को
कर सकूँ केवल तनिक गुणगान अब माँ शारदे।३।
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व्याप्त तनमन में अभी तक नष्ट हो ये मूढ़ता
फूँक दो इक मन्त्र देता कान अब माँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2023 at 11:37pm — 4 Comments
विकृत कर गणतंत्र का, राजनीति ने अर्थ
कर दी है स्वाधीनता, जनता के हित व्यर्थ।१।
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तंत्र प्रभावी हो गया, गण को रखकर दूर
कह सेवक स्वामी बने, ठाठ करें भरपूर।२।
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आयेगा गणतंत्र में, अब तक यहाँ वसंत
तन्त्र बनेगा कब यहाँ, बोलो गण का कन्त।३।
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भूखे को रोटी नहीं, न ही हाथ को काम
बस इतना गणतन्त्र में, गाली खाते राम।४।
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द्वार खोलती पञ्चमी, कह आओ ऋतुराज
साथ पर्व गणतंत्र का, सुफल सभी हों काज।५।
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लोकतंत्र के पर्व सह, आया …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2023 at 6:42am — 2 Comments
इस तमस की खोह में आ चाँद भूले से कभी तो
गीत गा दो तुम सुरीला, वेदना को भूल जाऊँ।
*
जब नगर हतभाग्य से आ खो गये हैं गाँव मेरे
हर कदम पर चोट खाकर पथ विचलते पाँव मेरे।।
तोड़कर सँस्कार सारे छू रहे प्रासाद तारे
धूप से भयभीत मन है पग जलाती छाँव मेरे।।
सभ्यता की रीत कोई भौतिकी गढ़ती नहीं है
आत्ममंथन कर लचीला, वेदना को भूल जाऊँ।
*
जन्म पर जो भी तनिक थी, तात की पहचान खोई
बन सका है भर जगत में,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2023 at 2:04pm — 4 Comments
इस मधुवन से उस मधुवन तक
पतझड़ पसरा है आँगन तक।१।
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पायल बिछिया तक जायेगा
आ पसरा है जो कंगन तक।२।
*
मत मरने दो मन इच्छाएँ
आ जायेगा यह यौवन तक।३।
*
दिखता जब ऋतुराज न कोई
फैल न जाये अब यह मन तक।४।
*
धरती की तो रही विवशता
पसरे मत यह और गगन तक।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2023 at 3:52pm — 2 Comments
सदियों पावन धाम रहा जो खोते देख रहा हूँ
बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ !
*
केवल अपनी पीड़ा से जो, दरक नहीं रहा है
पूर्ण हिमालय की पीड़ा को, उसने आज कहा है।।
पानी रिसना बोल रहे सब, देख फूटतीं धमनी
खोद खोद कर देह सकारी, जब कर बैठे छलनी।।
नयी सभ्यता के प्रलय को होते देख रहा हूँ
बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ।।
*
सिर्फ़ सैर के लिए हिमालय, सबने मान लिया है
इसीलिए तो अघकचरा सा हर निर्माण किया है।।
जो संचालक देश - राज्य के,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 18, 2023 at 6:30pm — 6 Comments
महक उठा है देखो आँगन, सुनकर ये संदेश।
साजन अपने घर लौटेंगे, छोड़ छाड़ परदेश।।
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जाने कितने पुष्प पठाये सुनके वनखण्डी ने।
जिन से गूँथे गाँव सकारे सर्पिल पगडण्डी ने।।
पतझड़ में आया है गाने फागुन हँसकर गीत।
सूने मन के आँगन होगा अब ऋतुराज प्रवेश।।
*
पोंछ पसीना अँगड़ाई ले जगकर थकी क्रियाएँ।
सौंप रही मीठे सम्बोधन फिर से खुली भुजाएँ।।
करने को उद्यत मनुहारें, झील किनारे चाँद।
बनजारा सूरज ठहरा है, फिर सुलझाने केश।।
*
सब खुशियाँ हैं सेज सजाती, करती नव…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2023 at 5:05am — 4 Comments
( सरसी छंद)
***
धीरे-धीरे जब आती है, घर आँगन में शीत।
नाना रूपों में रक्षा को, ढल जाती है प्रीत।।
माँ के हाथों स्वेटर में ढल, दे बचपन में साथ।
युवा हुए तो ऊष्मा देता, बन अनजाना हाथ।।
*
पत्नी होकर सदा चूमता, स्नेह शीत में माथ।
होते वंचित सिर्फ शीत में, लोगो यहाँ अनाथ।।
बचपन, यौवन रहे बुढ़ापा, सर्द शीत की रात।
उष्मित करती तन्हाई में, सिर्फ प्रीत की बात।।
*
प्रेम रहित तनमन करता है, जीवन से परिवाद।
सर्द शीत की रातों की तो, ला मत कोई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2023 at 6:22am — 1 Comment
गीत-११
*
स्वार्थ के विधान अब और यूँ गढ़ो नहीं।
अर्थ के अनर्थ कर प्रपंच नित पढ़ो नहीं।।
*
आप यूँ अनीति को लोभवश न मान दो।
छीन निर्बलों से मत सशक्त को जहान दो।।
मार्ग हो कठिन भले हर परोपकार का।
सिर्फ हित स्वयं के ही मत कभी वितान दो।।
*
अशक्त पर प्रहार कर क्रूर दर्प से बिहँस।
मानकर अनाथ हैं दोष निज मढ़ो नहीं।।
*
आह हर अशक्त की वज्र जब रचायेगी।
कौन शक्ति पाप का घट भला बचायेगी।।
हर तमस के अन्त को दीप जन्मता सदा।
सूर्य की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2023 at 2:23pm — 2 Comments
गीत-१०
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सब स्वागत में खड़े हुए हैं, आने वाले साल के
कौन विदाई देगा बोलो, जाने वाले साल को।।
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कितनी कड़वी मीठी यादें, बाँधे घूम रहा गठरी में
आँसू वाली आँख न कोई, देखी मतवाली नगरी में
आया था तो पलकपावड़े, बिछा दिये थे सब लोगो ने
आज न कोई पूछ रहा है, बोलो जाओगे किस डगरी।।
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दुख पाया जिसने उसकी तो, बात समझ में आती है
सुख पाने वाले भी कहते, रुको न जाते काल को।।
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माना अभिलाषायें सबकी, पूर्ण न कर पाया हो लेकिन
कुछ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2022 at 1:30pm — No Comments
( गीत -९)
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हर्षित करने सब का जीवन, आना नूतन साल।
निर्धन हो कि धनी नर नारी, रखना उन्नत भाल।।
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धर्म जाति से फूट मत पड़े, हो जनता समवेत।
नगर गाँव में अन्तर कम हो, यूँ व्यवहार समेत।।
हर आँगन में किलकारी हो, हरा भरा हर खेत।
स्वर्ण कणों में अबके बदले, ऊसर मिट्टी रेत।।
*
अतिशय हों भण्डार अन्न के, दूध दही भरपूर।
महामारियों, दुर्भिक्षो का, रूप न ले फिर काल।।
*
शासक कोई न हो विश्व में, इतना बढ़चढ़ क्रूर।
झोंके जायें और समर में, राष्ट्र न अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2022 at 3:53pm — 4 Comments
गीत-८
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कामना में नित्य जिस की, हर कली सुख की लुटाई।
पा लिया स्पर्श तेरा वेदना ने, अब न लेगी वो विदाई।।
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वेदना के बीज से ही, जन्म लेता है सुखद क्षण।
जेठ की तीखी तपन का, दान जैसे ओस का कण।।
कंटकों में पुष्प खिलते, दीप जलते नित तमस में।
मोल सुख का जानने को, हो गयी दुख से सगाई।।
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ध्वंस के अवशेष पर नित, दीप दुनिया है जलाती।
प्राण रहते पूछने पर, एक पल भी वह न आती।।
कर समर्पित प्राण ऐसे, चिर अखण्डित वेदना पर।
शेष करने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2022 at 7:30am — 4 Comments
किस मौसम के रंग चुराऊँ किस मौसम की रीत।
जिस को पाकर फिर से रीझे रूठा मन का मीत।।
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तितली फूल हवा को भी है इस का पूरा भान।
जगत मन्थरा बनकर भरता निश्चित उसके कान।।
आँखों देखा जाँचा परखा बना दिया सब झूठ।
इसीलिए तो मन के आँगन वह रच बैठी भीत।।
*
फागुन गाये फाग भला क्या सावन धोये पाँव।
मधुमासों में भी जब लगता पतझड़ जैसा गाँव।।
गुनगुन करते तितली भौंरे विरही मन सह मौन।
उस बिन व्याकुल हुई लेखनी रचे भला क्या गीत।।
*
तपते सूरज से विनती की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2022 at 7:23pm — 6 Comments
रूठ रही नित गौरय्या भी, देख प्रदूषण गाँव में।
दम घुटता है कह उपवन की, छितरी-छितरी छाँव में।।
*
बीते युग की बात हुए हैं
घास-फूँस औ' माटी के घर।
सूने - सूने, फीके - फीके
खेतों खलिहानों के मञ्जर।।
*
अन्तर जैसे पाट दिया है, आज नगर औ' गाँव में।
दम घुटता है अब उपवन की, छितरी-छितरी छाँव में।।
*
शेष हुए हैं देशी व्यञ्जन,
और विदेशी रीत हुए।
तीजों - त्यौहारों से गायब,
परम्परा के गीत हुए।।
*
लगता जैसे आन बसे हों, किसी विदेशी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2022 at 6:45am — 6 Comments
सोचा था हो बच्चा मन
लेकिन पाया बूढ़ा मन।१।
*
नीड़ सरीखा आँधी में
तिनका तिनका टूटा मन।२।
*
किस दामन को भाता है
सारी रात बरसता मन।३।
*
तन की मंजिल पास हुई
मीलों लम्बा रस्ता मन।४।
*
शूल चुभा सब कहते हैं
मत रख पत्थर जैसा मन।५।
*
पीर अगर नाचे आँगन में
तब किसका घर होगा मन।६।
*
कहकर कितना रोयें अब
दुख में भी मुस्काता मन।७।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2022 at 8:00am — 9 Comments
१२२२/ १२२२/१२२२
*
कठिन जैसे नगर में धूप के दर्शन
हमें वैसे तुम्हारे रूप के दर्शन।१।
*
कभी वो नीर का साधन रहा होगा
मगर होते नहीं अब कूप के दर्शन।२।
*
सुना है नृत्य करते हैं तेरे आँगन
बहुत दुर्लभ हमें तो भूप के दर्शन।३।
*
कभी थोथा उड़ा कर सार गहते थे
नये युग में गुमें हैं सूप के दर्शन।४।
*
जलन दूजे से होती हो जहाँ बोलो
किसी मुख पर हो कैसे ऊप के दर्शन।५।
*
यहाँ रूठी हुई छत नींव बागी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 1, 2022 at 12:30pm — 6 Comments
2122/2122/212
*
हर तरफ झण्डे गढ़े हैं नाम के
पर नहीं हैं आदमी वो काम के।1।
*
वोट खातिर पैर पकड़े जिसने भी
वो हुए ना एक पल भी आम के।2।
*
नाम पर उन के मचाते लूट सब
कौन चलता है यहाँ पथ राम के।3।
*
लोक ने अनमोल आँका था जिन्हें
आज देखो वो बिके बिन दाम के।4।
*
क्या पता भटका हुआ लौटे कोई
दीप कोई तो जलाये शाम के।5।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 30, 2022 at 8:12am — 6 Comments
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