थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा
पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा
देखते है सब यहाँ पे अजनबी अंदाज़ से
पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से
बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में
बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में
काटता है खलीपन अब मन कही लगता नहीं
वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता नहीं
रात भर मैं सोचता हूँ कल मुझे कारना है क्या
है नहीं कुछ हाथ मेरे सोच के डरना है क्या
टोक न दे कोई मुझको मेरी इस…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 11, 2020 at 3:30pm — 2 Comments
कभी लड़ाई कभी खिचाई, कभी हँसी ठिठोली थी
कभी पढ़ाई कभी पिटाई, बच्चों की ये टोली थी
एक स्थान है जहाँ सभी हम, पढ़ने लिखने आते थे
बड़े प्यार से गुरु हमारे, हम सबको यहाँ पढ़ाते थे
कोई रटे है " क ख ग घ", कोई अंग्रेजी के बोल कहे
पढ़े पहाड़ा कोई यहां पर, कोई गुरु की डाँट सहे
एक यहां पर बहुत तेज़ था, दूजा बिलकुल ढीला था
एक ने पाठ याद कर लिया, दूजे का चेहरा पीला था
कमीज़ तंग थी यहाँ किसी की, पतलून किसी की ढीली…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 27, 2020 at 8:06am — 3 Comments
वो मेरा करीबी था, मैं मगर फरेबी था
इश्क़ वो वफाओं वाली, चाह बन के रह गयी
जो भी सितम हुए, सब मैंने ही सनम किए
टोकड़ी दुआओं वाली, आह बनके रह गयी
था मेरा गरूर उसको, मेरा था शुरूर उसको
साथ जब मैंने छोड़ा, आंखे नम रह गयी
सपनों का था एक क़िला, मिलने का वो सिलसिला
तोड़ा उसके दिल को मैंने, पल मे सारी ढह गयी
वादे उसकी सच्ची थी, मेरी डोर कच्ची…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 19, 2020 at 1:46pm — 4 Comments
तोड़े थे यकीन मैंने मोहल्ले की हर गली में
सुकून हम कैसे पाते इतनी आहे लेकर
मौत हो जाए मेहरबा हमपे नामुमकिन है
ठोकरे ही हमको मिलेंगी उसके दरवाज़े पर
हर परत रंग मेरा यूँ ही उतरता गया
ज़मी थी शख्त मगर मैं बस धस्ता ही गया
गुनाह जो मैंने किये थे बेखयाली में
याद करके उन सबको मैं बस गिनता ही गया
किसी का हाथ छोड़ा किसी का साथ छोड़ दिया
मैंने हर बदनामी को उनकी तरफ मोड़ दिया
सामने जब भी वो आए अपना बनाने के…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 17, 2020 at 12:12pm — 2 Comments
जाग जाता हूँ सुबह ही आँख अब लगती नहीं
दिन गुजरता है नहीं और रात कटती ही नहीं
ऐसा लगता है मैं कोई व्यर्थ सा सामान हूँ
है कदर न जिसकी कोई खोया वो सम्मान हूँ
प्यार बीवी के नजर में वैसी अब दिखती नहीं
है खफा वो खूब लेकिन मुँह से कुछ कहती नहीं
पहले सी चहरे पे उसके अब हसी दिखती नहीं
मेरी ये उदास आँखे झूठ कह सकती नहीं
चिढ़चिढ़ा सा हो गया हूँ बस यु हीं लड़ जाता हूँ
छोटी-छोटी बातों पे मैं बच्चों पे चिल्लाता हूँ
मेरे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 16, 2020 at 6:30am — 5 Comments
वर्षों हुए
एक बार देखे उसको
तब वो पुरे श्रृंगार में होती थी
बात बहुत
करती थी अपनी गहरी आँखों से
शब्द कहने से उसे उलझने तमाम होती थी
इमली चटनी
आम की क्यारी
चटपट खाना बहुत पसंद था
सैर सपाटे
चकमक कपडे रंगों का खेल
गाना बजाना हरदम था
खेलना कूदना
पढ़ना लिखना सपने सजाना
सब उसके फेहरिस्त का हिस्सा थे
सावन, झूले
नहरों में नहाना, पसंद का खाना
कई तरह के किस्से…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 14, 2020 at 3:19pm — 6 Comments
मैं जहाँ पर खड़ा हूँ वहाँ से हर मोड़ दिखता है
इस जहाँ से उस जहाँ का हरेक छोड़ दिखता है
ये वो किनारा है जहां सब खत्म हुआ समझो
सभी भावनाओं का जैसे अब अंत हुआ समझो
दर्द मुझे है बहूत मगर अब उसका कोई इलाज नहीं
मैं ना लगूँ खुश मगर, मैं किसी से नाराज़ नहीं
मैंने देखा है खुद को उसकी आँखों मे कई दफा मरते हुए
उसने ये सब सहा है, हर बार मगर…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 11, 2020 at 9:28am — 3 Comments
उन गलियों को छोड़ दिया
उन राहों से मुँह मोड़ लिया
अपनी यारी के किस्से जहां
आज भी गूंजा कराती है
अब बची रही कुछ खास नहीं
उन उम्मीदों की प्यास नहीं
तेरे घर के चौबारे पर अब भी
आवाज़ जो गूंजा करती है
वो जुते में चिरकुट रखना
पीछे से यूँ पेपर तकना
हिंदी वाली मिस हमेशा
याद अभी भी करती है
वो रातों को पढ़ने जाना
एक दूजे के घर चढ़ आना
किताबे पिली पन्नी के अब भी
हर रात वही पर…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 2, 2020 at 2:37pm — 5 Comments
कुछ पल और ठहर जाओ के रात अभी बाकी है
दो घूंट कश के लगाओ के कई बात अभी बाकी है
जो टूटे है ख्वाब सारे वो बैठ के जोड़ेंगे
छाले दिल में है जितने भी इसी हाथ से फोड़ेंगे
थोड़ा तुम दिल को बहलाओ के ज़ज़्बात अभी बाकी है
के आज हद से गुज़र जाओ मुलाकात अभी बाकी है
तमन्ना जो भी है दिल में आज पूरी सारी कर लो
हम खाएं खो ना जाएं अपने बाहों में भर लो
करेंगे हम ना अब इंकार के इकरार अभी बाकी है
ना होंगे फिर ये हालात के ऐतबार अभी बाकी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 27, 2020 at 2:28pm — 7 Comments
चाहता हूँ कुछ लिखूं , पर सोचता हूँ क्या लिखूं ,
दिल में है जो वो लिखूं,या लब पे है जो वो लिखूं
सोये हुए जज्बातो को, एक लफ्ज़ दूँ जो बयान हो
टूटे हुए अरमानो को, एक शक्ल दूँ दरमायान हो
बिखरी हुई सी चाह को,बैठा हुआ मैं बटोरता
भूले हुए से राह पर, मैं बेलगाम सा दौड़ता
बंद एक संदूक में, मैं अन्धकार को तरेरता
खुद के तलाश में अपने ही,अक्स को मैं कुरेदता
चल जाऊं जो मैं चल सकूं,ले आऊं मैं जो ला सकूं
बीते…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 13, 2020 at 3:40pm — No Comments
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