उस रात .......
उस रात
वो बल्ब की पीली रोशनी
देर तक काँपती रही
जब तुम मेरी आँखों के दामन में
मेरे ख्वाबों को रेज़ा-रेज़ा करके
चले गए
और मैं बतियाती रही
तन्हा पीली रोशनी से
देर तक
उस रात
मुझसे मिलने फिर मेरी तन्हाई आई थी
मेरी आरज़ू की हर सलवट पर
तेरी बेवफाई मुस्कुराई थी
और मैं
अन्धेरी परतों में
बीते लम्हों को बीनती रही
देर तक
उस रात
तुम उल्फ़त के दीवान का
पहला अहसास…
Added by Sushil Sarna on September 13, 2021 at 3:42pm — 6 Comments
चाँद -चाँदनी पर दोहावली ......
देख रहा है चाँदनी , आसमान से चाँद ।
मिलने आया झील में , नीले नभ को फाँद।1।
देख चाँद को चाँदनी ,करे झील पर रक्स ।
सिमट गया है चाँद का, उजियारी में अक्स ।2।
चाँद फलक का ख़्वाब तो, धवल चाँदनी नूर ।
वीचि -वीचि क्रीड़ा करे, सोम प्रीत में चूर ।3।
विभा चाँद की देखती, तारों वाली रात ।
नील झील से कौमुदी, करे चाँद से बात ।4।
छुप-छुप देखे चंद्रिका, अपने विधु का रूप ।
बिम्ब चाँद…
Added by Sushil Sarna on September 3, 2021 at 3:55pm — 5 Comments
एक दोहा गज़ल - नज़रें -(प्रथम प्रयास )
नज़रें मंडी हो गईं, नज़र बनी बाज़ार ।
नज़र नज़र में बिक गया, एक जिस्म सौ बार।
*
नजरों को झूठी लगे, अब नजरों की प्रीत ,
हवस सुवासित अब लगे, नजरों की मनुहार ।
*
नजरों से छुपती नहीं , कभी नज़र की बात ,
नजरें करती हैं सदा, नजरों से व्यापार ।
*
भद्दा लगता है बड़ा ,काजल का शृंगार ,
लुट जाता है जब कभी ,नजरों का संसार ।
*
कह देती है हर नज़र , अन्तस की हर बात ,
कहीं नज़र की जीत है, कहीं नज़र की…
Added by Sushil Sarna on August 31, 2021 at 11:12pm — 7 Comments
दोहा मुक्तक :.....
1
मिथ्या मैं की डुगडुगी, मिथ्या मैं के ढोल ।
मिथ्या मैं का आवरण, मिथ्या मीठे बोल ।
मिथ्या जग के कहकहे, मिथ्या सब सम्बंध -
मिथ्या मौसम प्रीत के, मिथ्या प्रीत के कौल ।
............................................................
2
हर लकीर में जिन्दगी, जीती एक विधान ।
मरता है सौ बार तब , जीता है इन्सान ।
रख पाया है वक्त की, वश में कौन लगाम -
श्वास पृष्ठ पर है लिखा, आदि संग अवसान ।
सुशील सरना / 29-8-21
मौलिक…
Added by Sushil Sarna on August 29, 2021 at 10:48am — 4 Comments
मन पर कुछ दोहे : ......
मन को मन का मिल गया, मन में ही विश्वास ।
मन में भोग-विलास है, मन में है सन्यास ।।
मन में मन का सारथी, मन में मन का दास ।
मन में साँसें भोग की, मन में है बनवास ।।
मन माने तो भोर है, मन माने तो शाम ।
मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम । ।
मन मंथन करता रहा, मिला न मन का छोर ।
मन को मन ही छल गया, मन को मिली न भोर । ।
मन सागर है प्यास का, मन राँझे का तीर ।
मन में…
Added by Sushil Sarna on August 3, 2021 at 9:28pm — 4 Comments
मौसम को .....
सुइयाँ
अपनी रफ्तार से चलती रहीं
समय
घड़ी के बाहर खड़ा खड़ा काँपता रहा
मौसम
समय के काँधे पर
अपनी उपस्थिति की दस्तक देता रहा
बदले मौसम की बयार को छूकर
झुकी टहनियाँ
स्मृतियों में
पिछले मौसम के स्पर्श का रोमांच
सुनाती रहीं
मौसम को
वायु वेग से
रेत पर छोड़े पाँव के निशान
उड़- उड़ कर
अपनी व्यथा सुनाने लगे
मौसम को
झील के पानी में निस्तब्धता
दिखाती रही…
Added by Sushil Sarna on August 2, 2021 at 1:59pm — 17 Comments
सावन के दोहे :.........
गुन -गुन गाएँ धड़कनें, सावन में मल्हार ।
पलक झरोखों में दिखे, प्यारी सी मनुहार ।।
सावन में अक्सर करे , दिल मिलने की आस।
हर गर्जन पर मेघ की, यादें करती रास ।।
अन्तस में झंकृत हुए, सुप्त सभी स्वीकार।
तन पर सावन की करे, वृृष्टि मधुर शृंगार ।।
सावन में अच्छे लगें, मौन मधुर स्वीकार ।
मुदित नयन में हो गई, प्रतिबन्धों की हार।।
अन्तर्मन को छू गये, अनुरोधों के ज्वार ।
इन्कारों…
Added by Sushil Sarna on July 28, 2021 at 3:30pm — 6 Comments
प्रश्न ......
प्रश्न प्रश्न प्रश्न
स्वयं को तलाशते
सैंकड़ों प्रश्न
क्या मैं
सदियों से वीरान किसी पूजा गृह की
काल धूल के आवरण से लिपटी
कोई खंडित प्रतिमा हूँ
या फिर
किसी हवन कुंड में
किसी मनोरथ की सिद्धि के लिए
झोंकी जाने वाली सामग्री हूँ
या फिर
विषधरों के दंश झेलता
कोई चंदन का विटप हूँ
या फिर
काल की आँधी में अपने अस्तित्व से जूझता
धीरे-धीरे विघटित होता
शिला खंड…
Added by Sushil Sarna on July 26, 2021 at 12:54pm — 6 Comments
फ़र्ज़ ......
निभा दिया फ़र्ज़
संतान ने
भेजकर माँ - बाप को
वृद्धाश्रम
........................
आजकल फ़र्ज़ भी
निभाए जाते हैं
कर्ज़ की तरह
.........................
गुजर गए
गुजरना था उनको
जिन्दगी की आखिरी पायदान से
बदल कर
पुरानी नेम प्लेट अपने नाम से
निभा दिया फ़र्ज़
अपने वारिस होने का
सुशील सरना / 23-7-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 23, 2021 at 5:37pm — 2 Comments
अन्तस में नर्तन करें, विगत रैन के द्वन्द ।
मुदित नैन रचने लगे, प्रीत गंध के छन्द । ।
नैनों से नैना करें , गुपचुप- गुपचुप बात ।
रैन तिमिर में हो गए, अलबेले उत्पात ।।
थोड़े से इंकार थे, थोड़े से इकरार ।
भली लगी संघर्ष में, भोली भाली हार ।।
सुशील सरना / 20-7-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 20, 2021 at 12:00pm — 10 Comments
अभिव्यक्ति ......
कैसे व्यक्त करूँ
अपने प्रेम की गहराई को
अभिव्यक्ति के अवगुंठन में
एक खीज है
तुम्हें छूने की
अबोले स्पर्शों से
कब तक लड़ूँ मैं
तुम ही कहो न
अपने प्रेम की गहराई को
कैसे व्यक्त करूँ मैं
हां! मैं तुम्हें प्यार करूँगी
भोर की उजास में
साँझ की प्यास में
तृप्ति की आस में
हर हलाहल पी जाऊँगी
मर के भी जी जाऊँगी
बस मेरी तन्हाई में
कुछ देर और जी जाओ
तुम ही कहो
तुम्हारे प्यार में आखिर…
Added by Sushil Sarna on July 15, 2021 at 3:32pm — 10 Comments
सुलगते अँधेरे .......
न जाने आज
मन इतना उदास क्यों है
लगता है
स्मृतियों की सीलन से
मन की दीवारें
भुरभुरा सी गई हैं
यादों के पारदर्शी प्रतिबिम्ब
जैसे गिरती दीवारों पर
मन की बेबसी पर
अट्टहास लगा लगा रहे हों
कितनी ढीठ है
ये बरसाती हवा
जानती है मेरी आकुलता को
फिर भी मुझे छू कर
मुझसे मेरा हाल पूछती है
अब अच्छी नहीं लगतीं मुझे
आहटें
मन के वातायन पर गूँजती…
Added by Sushil Sarna on July 13, 2021 at 8:00pm — 8 Comments
मन का साहिल ......
जाने कब मेरे अन्तस में
भावनाओं का सागर उफान मारने लगा
भावों की वीचियों पर
चाहत की कश्ती
अठखेलियां करने लगी
दिल के किसी कोने में
एक चाहत उभरी
कि मैं हौले से छू लूँ
फिर वही
अधर दलों पर ठहरी
उल्फ़त की गंध
चुपके से
डूब जाऊँ
किसी मदहोश भंवरे की तरह
पुष्प आगोश में
पराग का रसपान करते हुए
आकंठ तक
और मिल जाए
मेरी चाहत की कश्ती को
मेरे मन का…
Added by Sushil Sarna on July 10, 2021 at 2:57pm — 10 Comments
आशा .......
बहुत कोशिश की
मगर हार गई मैं
उस अनुपस्थिति से
जो हर लम्हा मेरे जहन में जीती है
एक खौफ के लिबास में
मुझे ठेंगा दिखाते हुए
भोर से लेकर साँझ तक
दिनभर की व्यस्ततम गतिविधियों के बीच
हमेशा झकझोरती है
किसी ग़ैर की मौजूदगी
मेरे अंतःस्थल को
उस की अनुपस्थिति के लिए
निराशा की स्वर वीचियों के बीच कहाँ लुप्त होते हैं
आशा को प्रज्वलित करते अनुपस्थिति के स्वर
थकान की पराकाष्ठा पर
जब बदन निढाल होकर…
Added by Sushil Sarna on April 30, 2021 at 4:15pm — 3 Comments
पाकीज़गी ......
मैं
जिस्म से रूह तक
तुम्हारी हूँ
मेरी नींदें तुम्हारी हैं
मेरे ख़्वाब तुम्हारे हैं
मेरी आस भी तुम हो
मेरी प्यास भी तुम हो
मेरी साँसों का विश्वास भी तुम हो
मेरे प्राणों का मधुमास भी तुम हो
मगर ख़याल रहे
मेरे जिस्म को
दिखावटी पर्दों से नफ़रत है
मेरे पास आना तो
ज़माने के बेबस लिबास को
ज़माने में ही छोड़ आना
क्योंकि
मेरे जिस्म को
पाकीज़गी पसंद है
सुशील सरना
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 28, 2021 at 12:57pm — No Comments
Added by Sushil Sarna on April 19, 2021 at 8:30pm — 4 Comments
कहानी ..........
पढ़ सको तो पढ़कर देखो
जिन्दगी की हर परत
कोई न कोई कहानी है
कल्पना की बैसाखियों पर
यथार्थ की हवेलियों में
शब्दों की खोलियों में
दिल के गलियारों में
टहलती हुई
कोई न कोई कहानी है
पत्थरों के बिछौनों पर
लाल बत्ती के चौराहों पर
बसों पर लटकी हुई
रोटी के लिए भटकी हुई
आँखों के बिस्तर पर बे-आवाज
कोई न कोई कहानी है
सच
पढ़ सको…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 16, 2021 at 5:09pm — 2 Comments
मन पर दोहे ...........
Added by Sushil Sarna on April 13, 2021 at 1:30pm — 6 Comments
Added by Sushil Sarna on April 11, 2021 at 12:00pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on March 11, 2021 at 8:00pm — 10 Comments
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