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मोहन बेगोवाल's Blog – December 2015 Archive (3)

पहल (लघुकथा)

पवन व अशोक बहुत अच्छे दोस्त, मगर जब भी कभी पवन, अशोक से समाज की किसी समस्या के बारे में बात होती तो उस का बना बनाया एक ही जवाब होता ।

“कि मेरे साथ  राजनीती की बात न करो, सायद उस ने सोच रखा है कि जिन बातों का उस के घर, बच्चों व नौकरी से संबध नहीं, वो सभी बातें फजूल है ।“  

अशोक को घर में भी ऐसी बहस फजूल सी लगती ।

पवन को बात शुरू करते ही अशोक कह देता और कोई  बात करो , राजनीती नहीं , वरना वह शुरू होते ही विराम लगा देता,और कई बार  वहाँ से उठ कर चला जाता ।  

मगर पवन ने…

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Added by मोहन बेगोवाल on December 12, 2015 at 10:30pm — 2 Comments

पलट गई बाज़ी (लघुकथा)

इलेक्शन के ऐलान के बाद राजनीती का बाज़ार गर्म होने लगा,गाँव में हर पार्टी अपने अपने पर तोलने लगी ।

सभी तरफ  वोटर को लुभाने व उनका धर्म ज़ात व कीमत लगाने की तैयारी चल रही थी।

उस दिन मास्टर बजार में खड़ा कह रहा था “अब तो पहले जैसी राजनीती  नहीं रही” ।

“अब तो साये की तरह साथ रहने वाले पार्टी वर्करों पर भी कोई यकीन नहीं रहा”

पास खड़े आदमी ने कहा “ऐसा क्यूँ”, तुम देखते नहीं रेलियों में भीड़ जितनी  होती है, भीड़ को वोट में तब्दील करना एक टेढ़ी खीर बन गया है” । महिंद्र…

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Added by मोहन बेगोवाल on December 8, 2015 at 6:30pm — 5 Comments

जीत-हार (लघुकथा)

 “बीबी जी, आज के बाद आप की कोठी में  काम नहीं करूंगी” कांता ने काम खत्म करते हुए कहा ।

“क्या सभी घरों का काम छोड़ रही हो। ”

“नहीं” “तो मेरा क्यूँ ?” सरबजीत  ने फिक्रमंदी जाहिर करते हुए कहा ।

“तुम बीच में काम कैसे छोड़ जाओगी, मुझे कोई प्रबंध करने का मौका तो दिया होता ।

” बस हम ने तो फैसला कर लिया है कि हम आप की कोठी में काम नहीं करेंगे”

बात को आगे बड़ाते  हुए कांता ने कहा “हमने सोचा था कि आप पढ़े लिखे हैं, मगर अब पता चला कि पढाई ने तो बस आपकी सुरत ही बदली है,…

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Added by मोहन बेगोवाल on December 3, 2015 at 10:30pm — 4 Comments

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