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अतुकांत कविता : आजादी (गणेश बाग़ी)

प्रधान संपादक, आदरणीय योगराज प्रभाकर जी की टिप्पणी के आलोक में यह रचना पटल से हटायी जा रही है ।

सादर

गणेश जी बाग़ी

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Comment by Naveen Mani Tripathi on February 4, 2020 at 1:33pm
भाई पंकज मिश्र जी यदि बात बुरी लगी हो तो अपनी बात वापस लेता हूँ ।
यह एक रचनाकार का आक्रोश था ।

मैं अपनी कही हुई बात के लिए सबसे क्षमा मांगता हूं । देश की सहिष्णुता को नमन।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 4, 2020 at 10:38am

मित्रों, 

कार्य की व्यस्तता के कारण मैं आ नही पा रहा हूँ, साथ ही नेट की समस्या भी है । 

शीघ्र आने का प्रयास करता हूँ ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 4, 2020 at 10:14am

आदरणीय नवीन त्रिपाठी जी

1. आप यह सुझाव देने को स्वतंत्र हैं कि ओबीओ मंच पर साम्प्रदायिक प्रहार करने वाली रचना न भेजी जाए, किन्तु

2. क्या भेजी जाए इसका सुझाव अनुचित है, क्योंकि

3. यह रचनाकार की निजी स्वतंत्रता का हनन है, यह उसकी मर्जी वह किन बिंदुओं पर लिखे.......हो सकता है जो सत्य पहले के लोगी  को न दिखा हो या उन्होंने उसे देख कर भी अनदेखा किया हो उसे कोई न्यूटन, कोई आर्किमिडीज़, कोई कबीर देख पाए हो।

यूँ तो महिला सशक्तिकरण के युग में मबिलाओं के दर्द पर बहुत लिखा जा रहा, यह रचना भी उसी कड़ी का हिस्सा है किंतु यदि धार्मिक-सीमाओं के कारण कुछ लोगों को यह नागवार लग रहा तो इसे ओबीओ परम्परा और नियमों को ध्यान में रखकर यहाँ नहीं होना चाहिए.......लेकिन यह रचना कलंक नहीं है।

यदि यह रचना कलंक है तो कबीर दास बहुत कलंकी रचनाकार हो जाएंगे?

तमाम वह रचनाकार जो गलत पर कलम उठाते हैं सब कलंकी कहलाएंगे?

ख़ैर...... कहीं पढ़ा था.....कल्कि अवतार बलिया में जन्म लेंगे।

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 3, 2020 at 11:26pm
आ0 बागी साहब
आप ओबीओ के एडमिन ग्रुप से हैं ।
साहित्य कहाँ ले जा रहे हैं ?
पोस्ट किसी समुदाय विशेष के लिए घृणा की पराकष्ठा को पार करती हुई सी लगती है । मुझे लगता है ऐसी पोस्ट आप नहीं भेज सकते हैं यह पोस्ट किसी और ने आप का फोन यूज करके भेज दिया है ।

अगर लिखना ही था तो
1-पढ़े लिखे बच्चे जो नौकरी के अभाव में भीख मांगने की कगार पर आकर खड़े हैं वो लिखते ।
2- देश बिक रहा है ।
जीवन बीमा बिक रही है
भारत पेट्रोलियम बिक रहा है
रेलवे बिक रहा है
बी एस एन एल अम्बानी के लिए नष्ट किया गया एयर इंडिया बिक गया
ऑर्डनेंस फैक्ट्री को बेचने की तैयारी चल रही है
स्कूल बजाय खोले जाने के बिक रहे हैं या बन्द हो रहे हैं ।
जी डी पी पुराने पैमाने से 1.5 % है
महंगाई चरम पर
विकास ढूढता फिरता हूँ नजर नहीं आता
क्या यह सब विषय कम थे जो बेचारी शरीफ महिलाओं पर इतनी अभद्रता भरे से रचना के द्वारा प्रहार कर दिया ।
देश को बनाने में हिन्दू ही नहीं मुस्लिम भी समान रूप से भागी दार हैं ।
शरीफ घरों की महिलाएं हैं । उनके लिए ये शब्द उचित नहीं हैं ।

आ0 समर साहब के दिल पर क्या गुजरेगी इस पर तो विचार कर लेते ।
बलात्कार व्यभिचार की शिकार महिलाएं हर जाति धर्म मे हैं ।

निश्चय ही यह साहित्यकार की भाषा नहीं है । मुझे दुख है कि यह पोस्ट पिछले 48 घण्टों से अभी ब्लॉग पर जिंदा है । इसे हट जानी चाहिए थी ।

यह पोस्ट ओबीओ का कलंक है इसे अविलम्ब हटा लें तो महान दया होगी ।

मैं व्यक्तिगत रूप से अहिंसा वादी प्रदर्शन का समर्थन करता हूँ । यह हक कानून ने दिया है ।
नफरत की राजनीति का शिकार होने से आप बचें । अगर आप जैसे साहित्यकार इस तरह लिखेंगे तो दिल टूट जाएगा । देश बचाइए मुस्लिम भी हमारे भाई बहन ही हैं ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 3, 2020 at 10:39pm

इस रचना पर श्रेष्ठजनों के विचारों के बीच उपस्थित हूँ...

1. ओबीओ मंच की अपनी परम्परा सबसे महत्वपूर्ण है

2. हमें अपने बच्चों को सुधारना चाहिए......न कि पड़ोसी के बच्चे को.....बेहतर यह होता है कि हम अपनी कमियों की ओर ध्यान दें.......पर धर्म की कमियों को उस धर्म के उपासक स्वतः संज्ञान में लें तो अच्छा

3. साहित्यकार किसी धर्म का नहीं होता......अतः उसकी कलम को जहाँ दर्द महसूस होगा, उसका उल्लेख करेगी......अतः मंच को भी धैर्यवान और विचारवान होना चाहिए।

4. सबसे प्रमुख बात.....यदि किसी की भावना आहत करने वाली रचना हो तो उसे मंच से दूर रखना उचित लगता है।

शेष......मैं एक बहुत छोटी कलम हूँ........इसलिए कहा सुना माफ़ हो

रचना वही श्रेष्ठ जो सार्वभौमिक, सर्वकालिक और सर्व हृद शोधक हो

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 3, 2020 at 9:18pm

आदरणीय बागी साहिब, मुझे अभी भी यक़ीन नहीं हो रहा है कि यह कविता आप की है l पढ़कर अफ़सोस हुआ, कवि /साहित्यकार किसी एक वर्ग का नहीं होता है वो जनता यानि सबका होता है l मैं कई सालों से ओ बी ओ का सक्रिय मेंबर हूँ, लेकिन लगता है एसा पहली बार हुआ है l आप से निवेदन है कि इस कविता को तुरंत हटा लें ताकि साहित्य कारों में एकता कायम रहे और ओ बी ओ का माहौल ख़ुश गवार बना रहे

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2020 at 6:29pm

आदरणीय बागी जी , आप इस साहित्यिक मंच के इस मंदिर के सर्वे सर्वा हैं अभी तक इस बात को नियम के तहत समझाते आये हैं और विशुद्धीकरण भी करते आये हैं उनके खिलाफ़ जो कुछ ऐसा लिख बैठे हैं या लिख देते हैं जिसके लेखन से कोई विशेष वर्ग आहत हो सकता है फिर आपकी इस कविता को क्या समझूँ ऐसा लिखने से किसका भला  हो रहा है बताइये महिला होने के नाते महिलाओं के लिए ऐसे शब्द सच में जहरीले बाण जैसे चुभ रहे हैं महिला चाहे किसी भी वर्ग समुदाय की हो सम्मानीय होती है सम्मान भी चाहे न करें मगर ऐसे शब्द भी न प्रयोग करें | अपने दिल पर हाथ रख कर  सोचिये ये कविता क्या मेसेज दे रही है |प्लीज मेरी विनती है आपसे या योगराज जी से इसे मंच से हटा लें | साफ़ सुथरा बिना कंट्रोवर्सी का लेखन इस मंच की गरिमा रही है उस गरिमा को बरकरार रहने दें प्लीज़ |

Comment by मनोज अहसास on February 3, 2020 at 3:39pm

आदरणीय बागी जी 

आपकी इस कविता पर मंच की दो आदरणीय शख्सियतों ने आपत्ति जताई है आप उस पर अपना जवाब दीजिये,आप इस कविता के पीछे आपकी सोच पर अपनी सोच गद्य में लिखिए

Comment by Samar kabeer on February 2, 2020 at 3:42pm

जनाब बाग़ी जी आदाब,आपकी ये कविता ओबीओ के नियम के विरुद्ध है,और मुझे आपकी इस कविता पर सख़्त आपत्ति है,आप अपनी ये कविता मंच से हटा लें तो बहतर है,अन्यथा मुझे भी अपनी सक्रियता के प्रति बहुत कुछ सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on February 2, 2020 at 3:29pm

आ. बागी जी,
आप की कविता अपना हक मांगने वाली ,महिलाओं के प्रति ठीक रवैया नहीं दर्शाती .. साथ ही ये सभी महिलाहों को नहीं एक वर्ग विशेष की महिलाओं को टारगेट कर के उन की सामूहिक निर्णय क्षमता पर भद्दा मज़ाक है.
भारत की आज़ादी के आन्दोलन में शामिल महिलाओं पर भी ऐसी ही टिप्पणियाँ की जाती थीं और आज भी कामकाजी महिलाओं पर कतिपय कुण्ठित मानसिकता वाले ऐसी टिप्पणी करते रहते हैं.
यानी किसी बाग़ में बैठी हर महिला अपने चाचा द्वारा बलात्कार की गयी है?
क्या वहां हर महिला अपने ममेरे भाई से ब्याही गयी है?..
इस घृणित सोच के लिए मुझे आप पर अफ़सोस है. 
आप से निवेदन है कि या ये कविता मंच से हटा लें या मेरी सारी रचनाएं डिलीट कर के मुझे विदा कर दें..
सादर 

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