For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरे मेरे दोहे ......

तेरे मेरे दोहे :......

बनकर यकीन आ गए, वो ख़्वाबों के ख़्वाब ।
मिली दीद से दीद तो, फीकी लगी शराब ।।

जीवन आदि अनंत का, अद्भुत है संसार ।
एक पृष्ठ पर जीत है, एक पृष्ठ पर हार ।।

बढ़ती जाती कामना ,ज्यों-ज्यों घटता  श्वास ।
अवगुंठन में श्वास के, जीवित रहती प्यास ।।

कल में कल की कामना ,छल करती हर बार ।
कल के चक्कर में फँसा , ये सारा संसार ।।

बेचैनी में बुझ गए , जलते हुए चराग़ ।
उम्र भर का दे गए, इस चश्म को फ़राग़ ।।

तन्हाइयों में गूँजने, लगे हिज्र के राग ।
तारीकी में वस्ल की, सुलगी दिल में आग ।।

सुशील सरना/28-11-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 934

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 11, 2021 at 12:04pm

"बेचैनी में बुझ गए , जलते हुए चराग़ ।

 उम्र भर का दे गए, इस चश्म को फ़राग़ ।।"   वाह... आदरणीय, बहुत ख़ूब परिमार्जन किया है आपने,  पुनः बधाई।  सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2021 at 10:29pm

आ. भाई सौरभ जी, आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2021 at 8:20pm

आदरणीय सुशील सरना जी का दोहा कहीं खारिज नहीं होने जा रहा है, आदरणीय नीलेश जी. 

भ्रमकारी सुझाव कहने के कारणों पर व्यावहारिक रूप से मनन करें तो आपको मेरे कहे तथ्य स्पष्ट होंगे. हम नाहक ही देवनागरी की बैसाखी पर चलती हुई उर्दू को तूल देते हैं, जिसकी अपनी अलग किंतु समृद्ध लिपि है और अपना बहुआयामी विस्तार है. वर्ण में नुख्ता लगा देने से देवनागरी की वर्णमाला में किसी वर्ण का इजाफा नहीं हो जाता, न ही वह वर्ण अपना अलग समूह बना लेता है. यह प्रासंगिकता के नाम पर विशेष वर्ग के कुछ लोगों की अपनी मान्यता है, न कि वर्णमाला का विधान.  

किसी देवनागरी लिपि में लिखने वाले हिंदीभाषिक रचनाकार को दोनों ज के बीच का अंतर कैसे और कहाँ-कहाँ बताते चलेंगे ? यदि प्रयास ही करने को उत्सुक होंगे तो उसे रचनाकर्म पर काम करने के पूर्व उर्दू की तालीम देंगे ?

तो फिर रचनाकार रचनाओं पर काम करेगा या पहले भाषाविद बनेगा ? 

सादर

Comment by Sushil Sarna on December 6, 2021 at 1:10pm
आदरणीय तेज वीर सिंह जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सादर नमन
Comment by TEJ VEER SINGH on December 5, 2021 at 6:52pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी। बेहतरीन दोहे।

Comment by Sushil Sarna on December 4, 2021 at 8:25pm
आदरणीय अमीरुद्दीन साहिब, आदाब - सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 4, 2021 at 4:04pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, मुझे दोहे अचछे लगे, बधाई स्वीकार करें। सादर। 

Comment by Sushil Sarna on December 2, 2021 at 8:19pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 2, 2021 at 12:29pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 1, 2021 at 11:02am

आ. सौरभ सर, 
आग के उच्चारण का  और चराग़ के उच्चारण के  का अंतर  आप भी जानते और समझते हैं अत: मेरे सुझाव को भ्रमकारी कहना साहित्य के साथ अन्याय है. यह ठीक हिन्दी के  और  को अथवा  और  को दोहे के तुकान्त में लेने जैसा है ..
इस दोहे में 
इन्तिज़ार में बुझ गए, जलते हुए चराग़ ।
दिल में लेकिन वस्ल की, सुलगी धीमी आग ... इंतज़ार, चराग़ दिल वस्ल लेकिन आदि अधिकांश शब्द उर्दू भाषा के हैं अत: ऐसे में यदि एक शब्द और ठीक ले लिया जाए तो मुझ जैसा नासमझ भी ऑब्जेक्शन नहीं ले सकेगा.. यही सोच कर टिप्पणी की थी ..
वैसे भी लेखक ने स्वयं ग़ को नुक्ते के साथ प्रयोग में लिया है जिससे यह स्पष्ट है कि उन्हें भी ग और ग़ का अंतर पता है ..
यदि यह शब्द तुकान्त के इतर कहीं होता तो मैं यह सुझाव कतई नहीं रखता..
आ. सरना जी का दोहा कहीं  और जा कर ख़ारिज हो इससे बेहतर है कि हम सब घर में लड़ झगड़ कर/ बहस कर  के दोहा पक्का कर  दें  .. ये अपना घर है, यहाँ यह बातें न करें तो कहाँ करें..
फिर मेरा कोई आग्रह भी नहीं कि वे इसे बदले ही.. अंतत: यह उनकी कृति है, उनकी इच्छा का सम्मान रहेगा.
सादर  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
57 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
16 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service