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१. नहीं किसी से हूँ चिढ़ा, आता खुद पे रोष |
मुझमें ही सारी कमी, मुझमें सारा दोष ||

२. मैं ही पूरा आलसी, सोता हूँ दिन-रात |
नहीं ठहरती जीत तो, कौन अनोखी बात ||

३. मुझमें ही है वासना, मुझमें है आवेश |
मक्कारी की खान मैं, धर साधू का वेश ||

४. मन को कलुषित कर लिया, लाता नहीं सुधार |
हरा दिया हठ ने मुझे, कर डाला लाचार ||

५. करने थे सत्कर्म पर, किये बहुत से पाप |
इतना नीचे हूँ गिरा, सोच न सकते आप ||

६. जीत गई हैं इन्द्रियाँ, मिली मुझे है हार |
खो कर के संसार में, भूला जीवन सार ||

७. मैंने अपनेआप को, रोका न एक बार |
आया जबतक होश में, था सबकुछ बेकार ||

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Comment

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 8, 2012 at 10:47am

आदरणीया रेखा जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 8, 2012 at 10:46am

आपका हार्दिक आभार आदरणीय रक्ताले सर......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 8, 2012 at 10:45am

आदरणीय लक्ष्मण सर........आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 8, 2012 at 10:44am

सही कहा आपने आदरणीय सुरेन्द्र जी........हार्दिक आभार........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 8, 2012 at 10:43am

आदरणीय कुशवाहा सर....आपका बहुत-बहुत धन्यवाद..........

Comment by Rekha Joshi on August 8, 2012 at 10:25am

जीत गई हैं इन्द्रियाँ, मिली मुझे है हार |
खो कर के संसार में, भूला जीवन सार ||,अति सुंदर दोहे ,बहुत बहुत बधाई गौरव जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 7, 2012 at 10:27pm

 जीत गई हैं इन्द्रियाँ, मिली मुझे है हार |
खो कर के संसार में, भूला जीवन सार ||

वाह! गौरव जी बहुत सुन्दर दोहे. सभी एक से बढ़कर एक. बधाई.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 7, 2012 at 7:36pm

वाह कुमार गौरव अजितेंदु जी, आपके अतमावलोकन ने मुझे ही नहीं 

मेरे चिंतन में हमारे देश के नेताओं के कृत्यों पर उन्हें आत्मावालोक्कन 
करने हेतु सुझाव देने हेतु आपकी कविता पढ़ने को कहने को  निर्देशित 
किया | ऐसी रचना लिखने के लिए बधाई |
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 7, 2012 at 2:38pm

 मन को कलुषित कर लिया, लाता नहीं सुधार |
हरा दिया हठ ने मुझे, कर डाला लाचार ||

प्रिय अजीतेंदु जी बहुत सुन्दर दोहे ..सुन्दर सन्देश देते हुए काश हम अपने अंतर्मन में झांके आंके सुधारें तो सब बात ही बन जाए 


भ्रमर ५ 

 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 7, 2012 at 11:27am

अभी मौका है सुधरने का. आत्म विश्लेषण किया अच्छी बात है.

रचना के लिए बधाई.

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