तमाम उम्र भी ये बात हो नहीं सकती,
हमारी फिर से मुलाकात हो नहीं सकती।
हर एक ख्वाब की ताबीर मिल सके हमको,
कोई भी ऐसी करामात हो नहीं सकती।
गुरूब हो चुका मेरे नसीब का सूरज,
अब और नूर की बरसात हो नहीं सकती।
मैं रात हूँ मुझे सूरज मिले भला कैसे,
हो शम्स पास तो फिर रात हो नहीं सकती।
बजाय हमको मनाने के कह गये है वो,
के छोडो हमसे इल्तजात हो नहीं सकती।
कोई गुनाह बहुत ही कबीर है मेरा,
कबूल जिसकी मुनाजात हो नहीं सकती।
छुपा के रक्खूँ ये रिश्ता यूँ ही ज़माने से,
के हमसे इतनी एहतियात हो नहीं सकती।
हमारा दिल है के काबू में आ नहीं पाता,
तुम्हें भुलाने की शुरुआत हो नहीं सकती।
हयात पास है "इमरान" जब तलक तेरे,
ये खत्म तल्खी ए हालात हो नहीं सकती।
Comment
उम्दा गजल बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति बधाई इमरान खान भाई
हमारा' दिल है' के' काबू में' आ नहीं पाता, तुम्हें भुलाने' की' शुरुआत हो नहीं सकती। -- बहुत खूब
वाह शानदार ग़ज़ल हुई है
हार्दिक बधाई स्वीकारें
तमाम उम्र ये' अब बात हो नहीं सकती,
हमारी' फिर से' मुलाकात हो नहीं सकती। KYA SHER HAI JANAB ,,,,
हर एक ख्वाब की' ताबीर मिल सके हमको,
कोई भी' ऐसी' करामात हो नहीं सकती। SACH KAH DIYA
छुपा के' रक्खूँ' ये' रिश्ता यूँ' ही ज़माने से,
के' हमसे' इतनी' एहतियात हो नहीं सकती। BEST OF ALL
हमारा' दिल है' के' काबू में' आ नहीं पाता,
तुम्हें भुलाने' की' शुरुआत हो नहीं सकती। BAHUT KHOOB
हयात पास है' "इमरान" जब तलक तेरे,
ये' खत्म तल्खी' ए हालात हो नहीं सकती। POORI GAZAL KA SAMPOORNA NIRVAH MUJHE YAHA DIKHA THANKS IMRAN SAAB
बहुत खूब खान साहब, आपकी इस ग़ज़ल को पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा| इतनी सुन्दर रचना के लिए बहुत बधाई |
मैं' रात हूँ मुझे' सूरज मिले भला कैसे,
हो' शम्स पास तो' फिर रात हो नहीं सकती।
छुपा के' रक्खूँ' ये' रिश्ता यूँ' ही ज़माने से,
के' हमसे' इतनी' एहतियात हो नहीं सकती।---पूरी ग़ज़ल शानदार है एक एक शेर पर वाह निकलता है पर इन दो शेर को तो कई बार पढ़ गई मन नहीं भरा इनके लिए तो हजार बार वाह
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