For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यूँ लड़ते हुये हम कहाँ तक गिरेंगे

ज़हर भर चुका है दिलों में हमारे
सभी सो रहे है खुदा के भरोसे

जुबां बंद फिर भी अजब शोर-गुल है
हैं जाने कहाँ गुम अमन के नज़ारे

धरम बेचते हैं धरम के पुजारी
हमें लूटते हैं ये रक्षक हमारे

भला कब हुआ है कभी दुश्मनी से
बचा ही नहीं कुछ लुटाते-लुटाते

बटा घर है बारी तो शमशान की अब
यूँ लड़ते हुये हम कहाँ तक गिरेंगे

धरम का था मतलब खुदा से मिलाना
खुदा को ही बांटा धरम क्या निभाते

Views: 399

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नादिर ख़ान on February 13, 2013 at 10:55pm

आदरणीय सौरभ जी बहुत बहुत शुक्रिया 

आपके कोमेंट्स से मै धन्य हुआ 

इस रचना को पोस्ट करने के पूर्व संसय था मन में, 

एक तो गैर मुरद्दफ़ रचना थी, फिर काफिया भी सिर्फ ए स्वर का था 

मगर आपके कोममेंट्स के बाद लग रहा है इसे पोस्ट करके हमने अच्छा किया 

मन का संसय जाता रहा 

बहुत शुक्रिया आपका ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 13, 2013 at 11:42am

इस अंदाज़ पर थोड़ी देर से आ पारहा हूँ, नादिर भाई, इसके लिए दिल से खेद व्यक्त करता हूँ.

हर शेर अपने आप में एक समझ है, अनुभव है और उम्मीद है. हर शेर रवां-दवां है. किसी एक को कोट नहीं कर पा रहा हूँ, मग़र इन दो शेर पर मेरी बार-बार बधाई स्वीकार करें -

बटा घर है बारी तो शमशान की अब
यूँ लड़ते हुये हम कहाँ तक गिरेंगे

धरम का था मतलब खुदा से मिलाना
खुदा को ही बांटा धरम क्या निभाते... ... .....  ग़ज़ब की निग़ाह है. 

सादर

Comment by नादिर ख़ान on February 13, 2013 at 10:43am

अदरणीय डॉ.अजय जी,अरुण पाण्डे जी बहुत शुक्रिया आपने रचना को सराहा ...

Comment by Abhinav Arun on February 12, 2013 at 2:06pm

बहुत सुन्दर  श्री नादिर जी - 

भला कब हुआ है कभी दुश्मनी से
बचा ही नहीं कुछ लुटाते-लुटाते
इस  पर ख़ास बाद बधाई कबूल करें !!
Comment by Dr.Ajay Khare on February 12, 2013 at 1:16pm

NADIR JI BAHUT SUNDER RACHANA HAI EK SANDESH DETI HUI BADHAI

Comment by नादिर ख़ान on February 11, 2013 at 9:33pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी आपने रचना को सराहा 

बहुत-बहुत शुक्रिया..

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 11, 2013 at 3:26pm

बटा घर है बारी तो शमशान की अब
यूँ लड़ते हुये हम कहाँ तक गिरेगे ----------बहुत खूब, नादिर खान जी 

धरम का था मतलब खुदा से मिलाना

खुदा को ही बांटा धरम क्या निभाते------- बेहद उम्दा, हार्दिक बधाई स्वीकारे 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
21 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
21 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service