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सर झुकाना नहीं आता

क्या करें, 

इतनी मुश्किलें हैं फिर भी

उसकी महफ़िल में जाकर मुझको

गिडगिडाना नहीं   भाता.....

 

वो जो चापलूसों से घिरे रहता है

वो जो नित नए रंग-रूप धरता है

वो जो सिर्फ हुक्म दिया करता है

वो जो यातनाएँ दे के हंसता है

मैंने चुन ली हैं सजा की राहें

क्योंकि मुझको हर इक चौखट पे

सर झुकाना नहीं आता...

 

उसके दरबार में रौनक रहती

उसके चारों तरफ सिपाही हैं

हर कोई उसकी इक नज़र का मुरीद

उसके नज़दीक पहुँचने के लिए

हर तरफ होड मची रहती है

और हम दूर दूर रहते हैं

लोगों को आगाह किया करते हैं

क्या करें,

इतनी ठोकरें खाकर भी मुझको

दुनियादारी निभाना नहीं आता......

 

 

 

 

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on May 10, 2013 at 12:40pm

आदरणीय इस सुन्दर रचना हेतु आपको बधाई!

Comment by विजय मिश्र on May 10, 2013 at 12:20pm
बेशुमार लज्जत है आपकी बातों में , दिल खोलकर कही है अपनी और अपने जैसों की बात अनवरजी , शुक्रिया .
Comment by seema agrawal on May 9, 2013 at 8:08pm

मैंने चुन ली हैं सजा की राहें

क्योंकि मुझको हर इक चौखट पे

सर झुकाना नहीं आता......एक खुद्दार और स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए शायद ये विकल्प गलत बात के आगे सर झुकाने से कहीं बेहतर है 

हार्दिक बधाई अनवर जी एक सच्ची रचना के लिए 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2013 at 2:05pm

आदरणीय अनवर सौहेल साहब सादर, बहुत सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 8, 2013 at 9:58am

अपने मान सम्मान को जो गिरवी नहीं रखते वे कभी किसी के आगे गिडगिडाते नहीं है | इसी सारांश के साथ लिखी 

गयी सुन्दर रचना के लिए बधाई भाई श्री अनवर सुहैल जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 8, 2013 at 12:04am

किसी ख़ुद्दार की शख़्सियत वो क्या जाने जिनकी रीढ़ नहीं है.  या, एक अहसास यह भी कि जब मैं थका-गिरा-हारा हुआ होऊँ तो हे ईश्वर तुम याद तक न आना. तुम्हारे करम और नेमतों तले जीता हुआ मैं तुम्हारे सामने खुद को इतना असहाय नहीं देख सकता.

इसी भाव-दशा को जीती आपकी रचना के लिए बधाई, आदरणीय अनवर साहब.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 7, 2013 at 10:09pm

आ0 अनवर सुहैल जी,  सही बात है!  हम अपनी जरूरतों को प्रकट नही कर सकते हैं। हम समर्थ हैं।  ’इतनी ठोकरें खाकर भी मुझको,  दुनियादारी निभाना नहीं आता.....!’ जो करना है करें!  बधाई स्वीकारें।  सादर,

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