For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो कुछ ना कह पाती |

जब कली ही मुरझाने लगी ,  फूल कहाँ से आयेगा |
फिर निर्जन विरान मरूस्थल में , फूल कहाँ से लायेगा | 
सब तोड़ते रहेंगे कली ,  पौधा कौन बनाएगा  | 
वो दिन भी ऐसा आयेगा , जब गुलशन मिट जाएगा | 
देख दहेज़ की शिकार बनी , लोग बाग घबराते हैं | 
कोई बचाने नहीं आता , दूर देख डर जाते हैं |
दवा लगाते पौधों में , माँ बाप से छिपाते हैं | 
पर कौन बचाने आयेगा , जब वैद्य घूस खाते हैं |
जब चाहती हँसती गुडिया , तब माँ का फर्ज निभाती |
पर बेटे की चाहत में ही , सब कुछ चुपके सह जाती | 
कभी घर के धौस में आकर , वो कुछ ना कह पाती |
झेल कर अपमान का पीड़ा , जो आगे बढ़ ना पाती | 
बस मंगल में अमंगल होता , जब वो भी कोशी जाये | 
मन ही मन में जलती रहती , जब लोग बनते पराये |
रक्षक ही जब भक्षक बनता है , तब कौन आकर बचाये | 

वर्मा माया के मंडी  में , अब कौन किसे  समझाये | 

श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 378

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2013 at 11:26pm
देख दहेज़ की शिकार बनी , लोग बाग घबराते हैं | 

कोई बचाने नहीं आता , दूर देख डर जाते हैं |........ बहुत सुन्दर पंक्तिया.

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सादर, बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 16, 2013 at 3:04pm

बहुत ही भावनात्मक द्विपादियाँ रचीं हैं आपने आदरणीय सादर बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 15, 2013 at 3:18pm

सुन्दर सन्देश देती रचना के लिए बधाई श्री श्याम नारायण वर्मा जी 

Comment by ram shiromani pathak on May 15, 2013 at 2:35pm

बधाई आदरणीय बहुत ही सुन्दर।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 15, 2013 at 1:35pm
जब कली ही मुरझाने लगी ,  फूल कहाँ से आयेगा |
फिर निर्जन विरान मरूस्थल में , फूल कहाँ से लायेगा | 
सब तोड़ते रहेंगे कली ,  पौधा कौन बनाएगा  | 
वो दिन भी ऐसा आयेगा , जब गुलशन मिट जाएगा | 
देख दहेज़ की शिकार बनी , लोग बाग घबराते हैं | 

कोई बचाने नहीं आता , दूर देख डर जाते हैं |

समझते सब हैं पर अनुपालन नहीं करते 

सादर बधाई आदरणीय 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 15, 2013 at 8:39am

आ0 श्याम नारायण जी,  ‘जब चाहती हँसती गुडिया, तब माँ का फर्ज निभाती। पर बेटे की चाहत में ही, सब कुछ चुपके सह जाती।‘  वाह! बहुत ही सुन्दर।  बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by shalini kaushik on May 15, 2013 at 1:56am

बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .पूर्णतया सहमत 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service