For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पानी हमको पीना है

मिनरल या फिर फ़िल्टर

साफ़ पानी सुरक्षित पानी

खुद का बर्तन खुद का पानी||

 

पानी बड़ा या प्यास ?

विषय है ये बेहद ही ख़ास

प्यास है एक स्वाभाविक सी क्रिया

प्यास सभी को जगती है||

 

कभी मिल जाता पानी तो

कभी सूखे से तपती है

प्यास है तन के प्यास है मन की

प्यास आँखों की प्यास कुछ पाने की||

 

पानी चाहिए मीठा मीठा

हो तो फ़िल्टर या फिर मिनरल

प्यासा जब मरने को आता

कीचड़ से भी प्यास बुझाता||

 

प्यासे को पानी का मोल

बूंद बूंद अमृत अनमोल

पानी हमको पीना है

मिनरल या फिर फ़िल्टर||

 

सरिता पन्थी  "मौलिक व अप्रकाशित "

Views: 431

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2014 at 11:14pm

आ. सरिता जी , सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई ।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 27, 2014 at 12:20pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई आ० सरिता पन्थी जी ।

Comment by Shyam Narain Verma on November 26, 2014 at 9:53am

सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 2:10am

प्यासा जब मरने को आता

कीचड़ से भी प्यास बुझाता||....सुन्दर रचना ..आ..सरिता जी...बधाई .

Comment by somesh kumar on November 25, 2014 at 7:25pm

रहिमन पानी रखिए ,पानी वो जीवन तत्व है जो जीवन की बुनियाद है ,इसलिए पानी पीना ही पड़ेगा 

Comment by Meena Pathak on November 25, 2014 at 3:53pm

पानी तो पीना ही है सरिता जी मिनरल या फिर फ़िल्टर...सुन्दर रचना ..बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2014 at 11:03am

आदरणीय सरिता जी इस सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
45 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service