जैसे तुमने
तिनका तिनका जोड़ कर
धीरे-धीरे, बनाया अपना घोंसला
वैसे ही
तुमको देख-देख कर
बढ़ता रहा, मेरा भी हौसला
तुम एक- एक दाना चुग कर लायीं
अपने बच्चों को भोजन कराया
मैंने भी, वेसे ही खेतों में फसल लगायीं
दिन रात श्रम कर अन्न उगाया
धीरे धीरे रेत,बजरी ,सीमेंट ले आया
एक- एक ईंट जोड़कर
अपने सपनों का महल बनाया
जिस तरह तुमने अपने बच्चों को
उनके पैरों पर खड़ा किया
उड़ना सिखाया , उड़ा दिया, विदा किया
मैंने भी अपनी बिटिया को
पढ़ा –लिखा कर बड़ा किया
तुम्हारी प्रेरणा दे ,उसको ससुराल, विदा किया
अब अपने घर में, मैंने रख लिया है
वो खाली पड़ा तुम्हारा घोंसला
जिसे देख-देख कर
रोज बढाता रहता हूँ
अपने जीवन जीने का हौसला !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सोमेश भाई आपका हार्दिक धन्यवाद !
आदरणीय श्री गणेश जी "बागी जी,
सादर अभिवादन !
" कविता : तुम्हारा घोंसला" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" के रूप मे सम्मानित किये जाने पर आपका एवं संपूर्ण सम्पादक मण्डल का हार्दिक आभार, इधर संस्था के कार्यों से 5 दिसम्बर से एक ट्रेनिंग प्रोग्राम एवं सम्मलेन में बाहर जाना पडा एवं आज ही घर वापसी हुई है ,अत्यधिक व्यस्त कार्यक्रम होने के कारण इस मंच पर सक्रिय भी नहीं रह पाया ,पर आज यह सम्मान पाकर हार्दिक प्रसन्नता हो रही है इस स्वीकारोक्ति के साथ ,की मैं साहित्यिक रूप से सम्रध नहीं हूँ ,पर आप सभी ने बावजूद इसके रचना को इस योग्य समझा ये प्रेरणादायक है ,आपका पुनः धन्यवाद |
सादर
हरि प्रकाश दुबे
संवेदना और प्रेरणा के स्तर पर सार्थक समानान्तर दृश्य प्रस्तुत हुए हैं. आपकी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई तथा अनेकानेक शुभकामनाएँ, आदरणीय हरी प्रकाश जी.
एक बार फिर से इस मर्मस्पर्शी सकारात्मक सोच को जन्मती रचना हेतु हार्दिक बधाई |
सुंदर भावपूर्ण बेहतरीन रचना ... बेहतरीन रचना को बेहतरीन सम्मान आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी
बधाई भाई जी !सुंदर और भावपूर्ण रचना को उचित स्थान मिला है
आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया पर आपका हार्दिक आभार सोमेश भाई ! पुनः धन्यवाद !
घर हो या घोसला ,हौसला चाहिए उसे खड़ा रखने और बनाने के लिए ,सुंदर रचना पर बधाई
आदरणीय डॉक्टर गोपाल नारायन साहब ,आपका हार्दिक आभार!सादर
क्या बात है i अति सुन्दर i
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