आदित्य ,
तुम जीवन दाई हो
तुम्हारे ताप से जीवन चलता है
प्रेम भरा स्नेह मिलता है ,
समस्त धरा को ,
तूम दिनकर हो
रजनी को विदा करते हो
अनंत काल से ,
जीवन की मुस्कराहट आती है
तुम्हारे आगमन से ,
प्रभा आती है हरियाली में जिसके
ऊष्मीय स्नेह से प्रभाकर .,
दिन के नरेश , तुम्हारी सत्ता
धरती माँ को आभा देती है ,
खिलखाते है पुष्प .
फिर सोना उगले हरियाली ,
तुम्हारे ही तेज से ,भास्कर !
तुम समस्त जीवन हो
इस आकाश गंगा के
तुम्हारा स्वागत है , नित
मेरी धरती माँ की परिधि में ,
Comment
आशा जी और जवाहर लाल भाई का अभिनन्दन ..
ॐ श्री सूर्याय: नम: बिन सूरज सब कुछ निर्जीव सा है ...अच्छी प्रस्तुति अमन kumar जी!
तुम्हारे आगमन से ,
प्रभा आती है हरियाली में जिसके
ऊष्मीय स्नेह से प्रभाकर बहुत सुन्दर प्रभावशाली रचना सूरज की महत्ता को व्यक्त करती .. कुदरत की महिमा व्यक्त करती कविता बधाई स्नेहिल अमन कुमार जी
अच्छी ,रचना |
आ. अमन भाई , बढ़िया कविता लगी , कहीं कहीं टंकण त्रुटि है , सुधार लीजियेगा । रचना के लिये बधाई ।
दुबे जी का हार्दिक आभार
आदरणीय गोपाल जी के निर्देशन से सुधार किया गया है ,उनका अभिनन्दन
आदरणीय अमन जी ,सुन्दर प्रयास , सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई आपको !
अमन जी
अच्छी रचना है i शीर्षक का निर्वाह भी आवश्यक होता है i खिलखिलाते का पुष्प को सही कर लीजिये i स्नेह i
वर्मा जी का हार्दिक अभिनन्दन !
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