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ग़म मौत के .......(एक रचना )

ग़म मौत के ......(.एक रचना )

ग़म  मौत  के  कहाँ  जिन्दगी भर साथ चलते हैं
चराग़  भी  कुछ  देर  ही किसी के लिए जलते हैं


इतने  अपनों  में  कोई  अपना नज़र नहीं आता
अब  तो  रिश्ते  स्वार्थ  की कड़वाहट में पलते हैं


दोस्ती  राहों  की  अब राह में ही दम तोड़ देती है
अब किसी के लिए कहाँ दर्द आंसुओं में ढलते हैं


मिट  जाते  हैं  गीली  रेत पे मुहब्बत भरे निशाँ
फिर  भी  क्यूँ  लोग  गीली रेत पे साथ चलते हैं


सच  को छुपा कर लोग क्यूँ आडम्बर में जीते हैं
दम तो बिना पैरहन के ही ज़िस्म से निकलते हैं


सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on January 20, 2015 at 2:50pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। आपका सुझाव सर माथे। कोशिश करूंगा कि भविष्य में युग्मों को किसी बहर  में ढाल कर ग़ज़ल का रूप दूँ।  पुनः आपके हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 18, 2015 at 8:14am

आदरणीय सुशील सरना भाई , बहुत सुन्दर , बहुत बढिया विचार आपने रचना मे पिरोया है । आपकी रचना ग़ज़ल के  बहुत ही करीब है , आप चाहें तो इसे किसी एक बहर मे ढाल सकते हैं । रचना के लिये हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on January 17, 2015 at 7:57pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी स्नेहाशीष का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 16, 2015 at 3:28pm

वाह सरना जी

क्या उम्दा गजल कही है i

ग़म  मौत  के  कहाँ  जिन्दगी भर साथ चलते हैं
चराग़  भी  कुछ  देर  ही किसी के लिए जलते हैं

दोस्ती  राहों  की  अब राह में ही दम तोड़ देती है
अब किसी के लिए कहाँ दर्द आंसुओं में ढलते-------- सादर i

Comment by Sushil Sarna on January 16, 2015 at 9:32am

आदरणीय   umesh katara      जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 16, 2015 at 9:32am

आदरणीय  Hari Prakash Dubey     जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 16, 2015 at 9:32am

आदरणीय    मिथिलेश वामनकर    जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by umesh katara on January 15, 2015 at 7:48pm

सुन्दर रचना वाह सर वाह

Comment by Hari Prakash Dubey on January 15, 2015 at 7:42pm

ग़म  मौत  के  कहाँ  जिन्दगी भर साथ चलते हैं

चराग़  भी  कुछ  देर  ही किसी के लिए जलते हैं………शानदार, आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक बधाई आपको ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 7:40pm

आदरणीय सुशील सरना सर जी सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई...

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