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पहाड़ और पीठ

एक

पहाड़,
सिर्फ पीठ होता है
मुह होता तो बोलता
पहाड़ के पैर भी नही होते
हाथ भी
वरना वह चलता
कुछ करता या,
उठता बैठता भी
पहाड़, अपनी पीठ पर
लाद लेता है तमाम जंगल नदी नाले,
हरी भरी झील भी
सड़क और बस्तियां भी
और कुछ नही बोलता
क्यों कि,
पहाड़ सिर्फ पीठ है
और पीठ कुछ नही बोलती

दो,

पीठ,
पहाड़ नही होती
पर लाद लेती है पहाड़
पीठ के भी मुह नही होता
पहाड़ की तरह होती है एक सतह,
जो थपथपायी जाती है
पहाड़ लाद लेने के एवज में,
यही पीठ गोरी व चिकनी है तो फिसलती हैं
नजरें व हांथ भी और, द आते हैं पहाड़
और उग आते हैं आखों के जंगल खुंखार व भयावह
यही पीठ सख्त और मजबूत है तो
नही दिखा सकती पीठ
तमाम नस्तर व खंजर लगने के बाद भी क्यूंकी,
 पीठ पर पहाड़ होते हैं,
और पहाड़ के मुह नही होता
और पीठ के भी

मुकेश इलाहाबादी -------------

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by MUKESH SRIVASTAVA on February 19, 2015 at 10:25am

BHAUT BAHUT AABHAR MITRON RACHNAA PASANDGEE KE LIYE - VISHSESHSTAH - SAURABH PANDEY JEE, JITENDRA PASTARDIYA,GIRIRAJ BHANDARI,ER. GANESH BAGI , MITHILESH WAMANKAR, HARI PRAKASH DUBEY, AJAY SHARMA, DR GOPAL NARAYAN SRIVASTAVA AUR GUMNAM PITHAURAGARHEE JEE -


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 16, 2015 at 4:49pm

आदरणीय मुकेश भाई, पीठ के समानान्तर पहाड़ की संज्ञा रोचक बिम्ब प्रस्तुत कर रही है.
प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई.

दूसरी क्षणिका की इस पंक्ति का अर्थ नहीं समझ पाया - नजरें व हांथ भी और, द आते हैं पहाड़

हार्दिक शुभकमानाएँ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 16, 2015 at 12:17pm

वाह! क्या कहने.. बहुत सार्थक बात कही आदरणीय मुकेश जी. हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2015 at 9:10pm

आदरणीय मुकेश भाई , दोनो रचना यें बहुत सुन्दर लगीं , हार्दिक बधाई आपको ॥


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 15, 2015 at 3:32pm

क्या कहने भाई, दो पक्ष और दोनों एक दुसरे को सहारा देती हुई, अच्छी रचना लगी, बधाई प्रेषित है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 15, 2015 at 3:24am

आदरणीय मुकेश जी सुन्दर भावपूर्ण कविता हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:05am

आदरणीय मुकेश जी सुन्दर रचना ,// पहाड़ सिर्फ पीठ है

और पीठ कुछ नही बोलती// सुन्दर कल्पना ....// पीठ,

पहाड़ नही होती

पर लाद लेती है पहाड़/// वाह ..हार्दिक बधाई आपको !

 

Comment by ajay sharma on February 13, 2015 at 10:27pm

bahut hi khoobsoorat rachna ke liye badhai

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 7:38pm

मुकेश जी

आपका नजरिया काबिले तारीफ़ है  i

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 13, 2015 at 7:00pm
वाह सर जी पहाड़ को क्या खूब चित्रित किया है वाह वाकई पहाड़ सिर्फ पीठ भर होता है जो लादे रहता है पहाड़ियों का पहाड़ सा जीवन अपनी पीठ पर .............. इन खूबसूरत रचनाओं के लिऐ बधाई

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