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साँझ होते ही सो जाता हूँ अतीत की चादर ओढ़ कर,

साँझ होते ही
सो जाता हूँ
अतीत की चादर
ओढ़ कर,
बेसुध
न जाने कब
चादर विरल होने लगती है
इतनी विरल कि
चादर तब्दील हो जाती है
एक खूबसूरत बाग़ में
जिसमे तुम मुस्कुराती हो
फूल बन कर
और मै मंडराता हूँ
भँवरे सा
तुम इठलाती,
इतराती रात भर,
तो कभी ऐसा भी हुआ
जब मै बृक्ष बन उग आता हूँ
और तुम, बेल बन लिपट जाती हो
मै हँसता हूँ तुम मुस्कुराती हो
फिर तुम चाँद बन जाती हो
और मै - चकोर
और मै लगाने लगता हूँ टेर
पिऊ , पिऊ की
और तभी, सारा जादुई आलम
फिर से सघन होकर
तब्दील हो जाता है चादर में
जिसे फिर से सहेज
रख देता हूँ सिरहाने
रात फिर ओढ़ सो जाने को

मुकेश इलाहाबादी --------

(मौलिक/अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2014 at 11:17pm

क्या बात है ! आदरणीय बढ़िया कविता के लिये बधाई ।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 27, 2014 at 12:21pm

बहुत खूब भाई मुकेश इलाहाबादी जी।

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on November 26, 2014 at 2:04pm

jee saraahnaa aur sujhaaw ke liye aabhaar  - muktibodh jee ko padhnaa apne aapme ek pyaraa aur achhaa anubhav hotaa hai - Dr.Gopal Narayan Srivastava jee

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2014 at 1:10pm

मुकेश जी

आपकी रचना  एक  फैंटेसी की तरह है i  हिन्दी मे  फैंटेसी कम है i आप मुक्ति बोध की कविता 'अँधेरे में ' पढ़िए i आप फैटे सी को गहनता से समझेंगे   और बेह्त र लिखेंगे i मुझे विशवास है i सादर i

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on November 26, 2014 at 11:26am

rachnaa pasandgee ke liye bahut bahut aabhaar Rajesh Kumari  jee, Laxman jee, Hari Prakash Dubey jee, Somesh kumar jee


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 26, 2014 at 11:13am

एहसासों की ,भावनाओं की चादर ....बहुत खूब ..बधाई आपको आ० मुकेश श्रीवास्तव जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2014 at 10:52am

अति सुंदर हार्दिक बधाई ।

Comment by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 2:07am

अतीत की चादर सुन्दर लगती है ,सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई मुकेश जी !

Comment by somesh kumar on November 25, 2014 at 7:23pm

सुंदर प्रस्तुति ,प्रेम का गोता ही ऐसा है जहाँ हर तरह उसे देखने की चाह बनी रहती है ,और समर्पण उसके अनुसार प्रेमी को भी ने रूपों मे ढालता है |

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