For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आम  हूँ  बौरा रहा हूँ

पीर में  मुस्का रहा हूँ

मैं नहीं दिखता बजट में

हर  गज़ट पलटा रहा हूँ  

फल रसीले बाँट कर बस

चोट को सहला रहा हूँ

गुठलियाँ किसने गिनी हैं

रस मधुर बरसा रहा हूँ

होम में जल कर, सभी की

कामना पहुँचा रहा हूँ

द्वार पर तोरण बना मैं

घर में खुशियाँ ला रहा हूँ

कौन पानी सींचता है

जी  रहा खुद गा रहा हूँ

मीत उनको “कल” मुबारक

“आज” मैं जीता रहा हूँ

“खास” का अस्तित्व रखने

“आम” मैं कहला रहा हूँ

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 718

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 6:57pm

छोटी बहर में बहुत ,बेहतरीन गजल कही है आदरणीय अरुण जी. आपके अंदाज ने आम को आम न रहने दिया, ख़ास बना दिया. तहे दिल से बधाई लीजियेगा

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 12:54pm

आदरणीय अरुण निगम जी बहुत सुन्दर गजल है ,हार्दिक बधाई आपको !सादर

आम  हूँ  बौरा रहा हूँ

पीर में  मुस्का रहा हूँ

मैं नहीं दिखता बजट में

हर  गज़ट पलटा रहा हूँ 

फल रसीले बाँट कर बस

चोट को सहला रहा हूँ.......शानदार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 2, 2015 at 11:29am

आदरणीय अरुण भाई , छोटी बहर मे बहुत बढिया गज़ल हुई है । दिली मुबारक बाद कुबूल करें ॥

Comment by khursheed khairadi on March 2, 2015 at 10:28am

फल रसीले बाँट कर बस

चोट को सहला रहा हूँ

गुठलियाँ किसने गिनी हैं

रस मधुर बरसा रहा हूँ

“खास” का अस्तित्व रखने

“आम” मैं कहला रहा हूँ

आदरणीय अरुण निगम सर ,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,,बज़ट पर त्वरित प्रतिक्रिया |आम के आम गुठलियों के दाम ....ग़ज़ल भी और समीक्षा भी ....मज़ा आ गया |सादर अभिनन्दन |

Comment by Nirmal Nadeem on March 1, 2015 at 11:19pm
बहुत खूब बहुत खूब वाह वाह

एक बार दूसरा व् पांचवां शेर देख लीजिये
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 1, 2015 at 11:10pm

लाजव़ाब क्या कहने!! आदरणीय अरुण निगम जी इस गजल के माध्यम से आपका प्रथम परिचय पा रहा हूँ!

गजब की गजल है...इतनी ताजगी लिए गजल बहुत दिनों बात सुनी!! सुने सुनाए शब्दों से हटकर!!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2015 at 9:32pm

क्या कहने आदरणीय अरुण निगम जी, एक एक शेर उम्दा ख्याल से लबरेज है, छोटी बहर में ऐसी खुबसूरत ग़ज़ल पढ़ मन आनंदित है. कुछ डाउट वज्न को लेकर है ...

गज़ट, हवन को 21 और जिजिविषा को 212 में बांधना मुझे समझ नहीं आया. बहरहाल इस ग़ज़ल हेतु ढेरों दाद कुबूल करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 9:16pm
आदरणीय अरुण सर क्या खूब रचना है हर शेर अपना अलग ही असर छोड़ रहा है बहुत बहुत बधाई आपको
Comment by somesh kumar on March 1, 2015 at 8:02pm

वाह ,वास्तविकता से लबरेज़ तंज़ |खुद को आम-आम कहकर मलाई खाने वालों पर और बिना शिकायत आम बने रहकर दुनिया को बढ़ाने वालों की हकीकत कहने के लिए |दिली दाद |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 1, 2015 at 7:42pm

आम  हूँ  बौरा रहा हूँ

पीर में  मुस्का रहा हूँ -  -  वाह ! जब ख़ास को मतले में चुन लिया में आम से ख़ास हो गए | क्या तरकीब लगाईं है 

“खास” का अस्तित्व रखने

“आम” मैं कहला रहा हूँ | -  वाह ! बेहतरीन गजल रचना के  लिए बधाई  श्री अरुण निगम  भाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service