For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘धुंध’ : हरि प्रकाश दुबे

‘धुंध’ : हरि प्रकाश दुबे

 

“अरे आइये – आइये अवस्थी जी, आज इतनी सर्द शाम को आप मेरे घर, वाह! अरे रुकिए पहले पीने के लिए कुछ लेकर आता हूँ, ये लीजिये ब्रांडी है, ठीक रहेगी । पर यह क्या, इतना पसीना क्यों आ रहा है आपको?”

“अरे कुछ ख़ास नहीं, बस थोडा सा घबरा गया था।“

ओह !..“ अवस्थी जी अब पहेलियाँ मत बुझाइये, ठीक –ठीक बताइये की हुआ क्या ?”    

“क्या बताऊं चौधरी साहब ! आज अभी कुछ देर पहले, कुछ बाइक सवार लोगों ने मुझे रास्ते में घेर लिया, जबरन गाड़ी का शीशा खुलवाया और कनपटी पर रिवाल्वर लगा कर मेरा फ़ोन , घड़ी, पर्स सब छीन लिया, वो तो मेरी गाड़ी भी ले जाने की फिराक में थे पर तभी उनमें से किसी ने कहा की बस !.. बस यूँ समझिये जान बच गयी आज, देखिये, दिल अभी भी तेजी से धड़क रहा है, बड़ी मुश्किल से आपके घर तक पहुंचा हूँ, अब घर तक जाने की हिम्मत भी नहीं हो रही है ।”

“कोई बात नहीं अवस्थी जी, चलिये मैं पंहुचा देता हूँ, या पहले थाने चलते हैं फिर आपको घर तक छोड़कर मैं वापस आ जाऊंगा ।“

“हा ..हा यह भी खूब कहा आपने चौधरी साहब अब रात भर यही खेल चलेगा क्या ? वैसे अपना बेटा आनंद कहाँ है ?”

“ये लीजिये अवस्थी जी, आपने नाम लिया और साहब हाजिर, आनंद साहब अब कमाने लगे हैं , एक बड़ी कम्पनी में सुरक्षा अधिकारी हैं, अरे आनंद जरा अवस्थी अंकल को घर तक छोड़ कर आ जाओ ।“...जी पिताजी ।“

“प्रणाम अवस्थी अंकल, चलिए ।“

“खुश रहो बेटा, पर तुम कैसे आओगे ?“

“अरे अंकल मेरा एक गार्ड मोटरसाइकिल लिए बाहर ही खड़ा है, मैं जरा राउंड पर हूँ ,बस आपको छोड़कर मैं उसी के साथ आ जाऊंगा , आप बिलकुल चिंता न करें, अब आनंद अवस्थी जी की कार को लेकर उनके घर की तरफ चल दिया, और थोड़ी ही दूर पर उसने कार रोक दी और अवस्थी जी से कहा, अंकल बाहर ‘धुंध’ बहुत है कुछ भी ठीक से नहीं दिखाई दे रहा, जरा मैं शीशा साफ़ करता हूँ, गाड़ी का हीटर ऑन है आप अन्दर ही बैठिये ।“

तभी पीछे से मोटरसाइकिल लिए गार्ड भी बगल में रूक गया और आनंद से बोला क्या बात है बॉस ? अबे जल्दी से सारा सामान वापस कर –आनंद ने कहा !

“लीजिये अंकल अब सब साफ़ दिखाई दे रहा है, और ये लीजिये अपना फ़ोन, घड़ी और पर्स और हाँ इतनी रात को इस उम्र में अकेले मत निकला करिए वो भी इतनी सर्दी और ‘धुंध’ में, वो तो अच्छा हुआ मैंने आपको पहचान लिया था वरना ! आप तो जानते ही हैं, ज़माना कितना खराब है , ये लीजिये आपका घर भी आ गया, अब चलता हूँ, और हाँ पिताजी और पुलिस के चक्कर में मत पड़ियेगा ।“

“अरे बेटा चाय तो पीकर जाओ ।“

“शुक्रिया अंकल ,फिर कभी, आज ‘धुंध’ बहुत है, धन्धे का समय है ।”

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 678

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 10, 2016 at 12:25am

अजीब ही धंधा है ! :-)))

बहरहाल, इस प्रस्तुति केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ. 

Comment by vijay nikore on February 2, 2016 at 3:43pm

//आज ‘धुंध’ बहुत है, धन्धे का समय है//..... इन शब्दों में लघु-कथा की जान है। हार्दिक बधाई।

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2016 at 2:37am

बहुत -बहुत आभार आपका आ.तेज वीर सिंह जी ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2016 at 2:34am

रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु  सादर धन्यवाद आदरणीय Samar kabeer साहब !सादर 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 28, 2016 at 10:15pm
बहुत उम्दा रचना आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी। धुंध और कोहरे को विभिन्न जगह पर विभिन्न प्रयोगों के साथ जो रचना को आपने बेहतर लुक दिया है उसने रचना को और अधिक प्रभावी बना दिया है। सादर बधाई स्वीकार करे। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 28, 2016 at 12:15am

आदरणीय हरि प्रकाश जी, बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई.

Comment by kanta roy on January 27, 2016 at 9:19am

रोजगार के तलाश में बहकते कदम , एक गहन विडम्बना को उकेरा है आपने इस धुंध के माध्यम से।  ढेरों बधाई स्वीकार करे आदरणीय हरी प्रकाश जी। 

Comment by pratibha pande on January 26, 2016 at 7:33pm
आज ‘धुंध’ बहुत है, धन्धे का समय है ।” इस अंतिम वाक्य ने इतना कुछ कह दिया कि कई धुध में छिपे चेहरे साफ़ दिखने लगे , इस शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी
Comment by TEJ VEER SINGH on January 26, 2016 at 6:58pm

हार्दिक बधाई आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी!बहुत शानदार लघुकथा!समाज कितनी तरक्की कर गया है!लोग पढ लिख कर भी लूट खसोट कर रहे हैं!लाज़वाब प्रस्तुति!

Comment by Samar kabeer on January 26, 2016 at 5:36pm
जनाब हरि प्रकाश दूबे जी आदाब,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश जी..ख़ुर्शीद (सूरज) ..उगता है अत: मेरा शब्द चयन सहीह है.भूखे को किसी ही…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मतला बहुत खूबसूरत हुआ,  आदरणीय भाई,  नीलेश ' नूर! दूसरा शे'र भी कुछ कम नहीं…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
". तू है तो तेरा जलवा दिखाने के लिए आ नफ़रत को ख़ुदाया! तू मिटाने के लिए आ. . ज़ुल्मत ने किया घर तेरे…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. लक्ष्मण जी,मतला भरपूर हुआ है .. जिसके लिए बधाई.अन्य शेर थोडा बहुत पुनरीक्षण मांग रहे…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. आज़ी तमाम भाई,मतला जैसा आ. तिलकराज सर ने बताया, हो नहीं पाया है. आपको इसे पुन: कहने का प्रयास…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122**भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आइन्सान को इन्सान बनाने के लिए आ।१।*धरती पे…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
11 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
14 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
19 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service