For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जंगल आजाद हुआ।पशु-पक्षियों को शासन की कमान मिली।आदमी काफी दूर निकल चुके थे। नृत्य-कला की प्रवीणता से मोर को सबसे बड़ी कुर्सी मिली।विभिन्न जानवरों और परिंदों को मंत्री पद मिले।लक्ष्मी जी की सवारी को वित्त का जिम्मा सौंपा गया।खान-पान के सामान और महंगे हो गये।लूट तरक्की का सामान बन गयी।छोटे-छोटे जीवों की बचत बड़े-बड़े दिग्गज जानवर गटकने लगे।माद्दा होता कर्ज लेने का,फिर सारी राशि हड़प जाने का।उधर सरकारी ऐलान होता कि तिजोरी खाली है,जनता सरकार का का सहयोग करे।खर्च कम करे,कर चुकाये।उधर जंगल(देश-जनता) की सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा अर्थव्यवस्था में कोई योगदान नहीं कर पा रहा था,अनुपार्जक की श्रेणी में शुमार हूँ चुका था।गीदड़,गिरगिट और बगुला आपस में बातें कर रहे थे।गीदड़ बोला,
-अपुन तो गीदड़भभकी से ही काम निकाल लिया करते थे।
-हाँ,क्यूँ नहीं?',गिरगिट बोला-
-अब तो मैं भी रंग बदलना भूल गया हूँ।
अब सत्ता वाले ही रंग बदलू हो चुके हैं।
-बगुलाभगत भी अभी कम नहीं हैं।मैं तो महज बगुला हूँ', बगुले ने अपनी व्यथा जाहिर की।
-हाहाहा', गीदड़ ने चतुराई की चर्चा छेड़ दी---
-अरे भाई अक्ल का अंधा शिक्षा-दीक्षा का काम संभालेगा,तो आखिर क्या होगा?
-और उल्लू खजाने की चाभी लेकर घूमेगा तब?',बगुले ने चुटकी ली।
-चलो भाइयो!रंग बदलने से मैं तो बच गया', गिरगिट ने राहत की साँस ली।
'मौलिक व अप्रकाशित'

Views: 923

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 7, 2017 at 8:55pm

बिम्बों के आधार पर आपने आज के हालत पर अच्छा व्यंग किया है सुंदर सार्थक लघु कथा हेतु हार्दिक बधाई आद० मनन जी |

Comment by vijay nikore on July 7, 2017 at 12:09pm

कटाक्ष बहुत ही अच्छा दर्शाया है। हार्दिक बधाई, आदरणीय मनन जी।

Comment by Manan Kumar singh on July 4, 2017 at 8:39am
आभार आदरणीय रवि जी।'हो' ही होगा,टंकण जनित विचलन है,शुक्रिया।
Comment by Ravi Prabhakar on July 4, 2017 at 7:27am

आदरणीय मनन जी, बहुत अच्‍छी लघुकथा कही आपने । प्रथम अनुच्‍छेद बहुत गहन व तीक्ष्‍ण संदेश दे रहा है । परन्‍तु  अंत तक आते आते लघुकथा थोड़ी कमजोर पड़ गई। / अनुपार्जक की श्रेणी में शुमार हूँ चुका था/ यहां हूँ के स्‍थान पर शायद हो शब्‍द अधिक उपयुक्‍त है । यदि अनुपार्जक के स्‍थान पर भी कोई आसान शब्‍द इस्‍तेमाल किया जाता तो अच्‍छा रहता । प्रभावशाली रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।

Comment by Manan Kumar singh on July 3, 2017 at 7:42am
आभार आदरणीया नीता जी।
Comment by Nita Kasar on July 2, 2017 at 7:24pm
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सारगर्भित है कथा बधाई आद० मनन कुमार सिंह जी ।
Comment by Manan Kumar singh on July 2, 2017 at 6:12pm
आभारी हूँ आदरणीय सुरेन्द्र जी।
Comment by Manan Kumar singh on July 2, 2017 at 6:11pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय उस्मानी जी।
Comment by नाथ सोनांचली on July 2, 2017 at 2:46pm
उम्दा कटाक्ष, बधाई स्वीकारें।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 2, 2017 at 2:08pm
बहुत ही समसामयिक प्रतीकात्मक कटाक्षपूर्ण प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। इस रचना के प्रस्तुतिकरण से मुझे भी कुछ सीखने को मिला है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
17 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service