For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक खास बह्र  पर ग़ज़ल

122 122 121 22

तेरे हुस्न पर अब शबाब तय है ।
खिलेगा चमन में गुलाब तय है ।।

अगर हो गयी है तुझे मुहब्बत ।
तो फिर मान ले इज्तिराब तय है ।।

अभी तो हुई है फ़क़त बगावत ।
नगर में तेरे इंकलाब तय है ।।

बचा लीजिये आप कुछ तो पानी ।
मयस्सर न होगा ये आब तय है ।।

किया मुद्दतों तक वो जी हुजूरी ।
सुना है कि जिसका खिताब तय है ।।

अगर आ गए मैक़दे में तुम भी ।
तो महँगाई में भी शराब तय है ।।

करे कौन उल्फ़त का हौसला अब ।
जो किस्मत हमारी खराब तय है ।।

अगर माँग बैठा जो दिल मैं उनसे ।
तो मेरे सनम का जवाब तय है ।।

करेगा ख़ुदा से तू क्या तिज़ारत ।
सितम का तेरे जब हिसाब तय है ।।

मिलेगी न जन्नत तुम्हे कभी भी।।
तुम्हारे तो हक़ में अज़ाब तय है ।।

नहीं मिल सकेगी नज़र ये तुमसे ।
जो रुख पर तुम्हारे नकाब तय है ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

शब्दार्थ
शबाब युवा अवस्था
आब - जल
इज्तिराब - बेचैनी
अज़ाब पाप का फ़ल
ख़िताब - मेडल सम्मान चिन्ह

मौलिक अप्रकाशित

Views: 542

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Tiwari on July 8, 2019 at 9:02am

आदरणीय नवीन जी, ये अरकान किसी जायज़ बह्र में मुमकिन नहीं हैं. आपके अरकान(122 122 121 22 = 122 122 12 122) के सब से क़रीब की बह्र 122 122 122 122 है. एक नए प्रयास के लिए बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2019 at 2:17pm

आदरणीय नवीन भाई , ग़ज़ल के लिए बधाई , ये बहर  मेरे लिए नई है , अतः मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ , गुनीजनो का इन्तिज़ार कीजिए...

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 4, 2019 at 5:55pm

किया मुद्दतों तक वो जी हुजूरी ।
सुना है कि जिसका खिताब तय है

वाह क्या शेर है नवीन जी

बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service