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कहता हूँ तुझसे जन्मों का नाता है ओबीओ

गजल
221/2121/1221/212

*
लेखन का खूब गुण जो सिखाता है ओबीओ
कारण यही है सब  को  लुभाता  है ओबीओ।।
*
जुड़कर  हुआ  हूँ  धन्य  निखर  लेखनी गयी
परिवार  जैसा   धर्म   निभाता   है  ओबीओ।।
*
कमियों बता के दूर करें कैसे यह सिखा
लेखक सुगढ़ हमें यूँ बनाता है ओबीओ।।
*
अच्छा स्वयं तो लिखना है औरों को भी सिखा
चाहत ये सब के  मन  में  जगाता  है ओबीओ।।
*
वर्धन हमारा  हौसला  करने  को साथ साथ
बढ़चढ़ के आगे नित्य जो आता है ओबीओ।।
ई*
कब  से  जुड़े  हो  प्रश्न  अगर  पूछ  ले  कोई
कहता हूँ तुझसे जन्मों का नाता है ओबीओ।।
*
रखते हैं याद जन्म दिवस हम भी इसलिए
माता का धर्म जब यूँ निभाता है ओबीओ।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2022 at 9:42am

आ. भाई पंकज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 8, 2022 at 2:07am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओबीओ को एक शानदार ग़ज़ल से आपने जन्म दिन की मुबारकबाद दी है। बहुत खूब। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई आपको। सादर।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 7, 2022 at 5:27pm

आदरणीय लक्ष्मण सर, अच्छी ग़ज़ल हुई है....साधुवाद

Comment by Samar kabeer on April 6, 2022 at 2:29pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, ओबीओ के जन्म दिन पर अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें I 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 6, 2022 at 1:21pm

अहा अहा 

ओबीओ की प्राण ऊर्जा को शब्दबद्ध कर दिया प्रिय लक्ष्मण भाई जी 

हर शेर बहुत खूबसूरत हुआ है 

बहुत बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2022 at 11:35pm

कृपया तीसरे शेर में कमियों के स्थान पर कमियाँ पढ़ें। सादर..

कृपया ध्यान दे...

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