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“अनिता, यार जल्दी करो, ऐसे तो दोपहर का शो भी निकल जाएगा !” विजय अपनी पत्नी अनिता से बोला !

“बस अब सब्जी कट ही गई, इसे गैस चढ़ाकर तैयार हो जाऊंगी, टेंसन नॉट, समय पर पहुँच जाएंगे !” अनिता सब्जी काटते हुवे कह रही थी कि तभी, “आह...!” अचानक चाकू हाथ पर लग गया !

“अरे अनिता..... ध्यान कहाँ था..? छोड़ो ये सब्जी, चलो मै दवा लगा देता हूँ !” विजय चौकता हुवा बोला, और फिर जख्म पर दवा लगाकर पट्टी किया ! इसके बाद सब्जी काटकर गैस पर चढ़ा दिया ! इधर अनिता तैयार होने की कोशिश में थी !

“अरे यार, बोलना चाहिए न... हाथ में ताजे घाव की पट्टी है, फिर भी....” विजय बोल ही रहा था कि अनिता बीच में ही बोल पड़ी, “तैयार तो होना ही था, और अब तो हो भी गई, बस ये चूड़ियाँ....?”

“लाओ, आज अपनी प्यारी बीवी को मै अपने हाथों से चूड़ियाँ पहनाऊंगा..!” कहके, विजय चूड़ी पहनाने लगा !

“विजय...कहाँ हो भाई..?” संजय, सुनिता के साथ कमरे में प्रवेश करते हुवे बोला, “अरे ये क्या कर रहे हो..?” चूड़ी पहनाते देख थोड़ा चौका और फिर बोला, “खैर ! ये लो तुम्हारी गाड़ी की चाभी, हमारी ट्रिप हो गई..! अच्छा, बहुत थक गए हैं, अभी चलते हैं !” कहकर, संजय सुनिता को खींचते हुवे चल दिया !

“देखा, कितना प्यार करते हैं विजय भाई अनिता से, और एक तुम...” सुनिता बाहर आकर संजय से बोली!

“चुप रहो... प्यार है कि जोरू की गुलामी....नपुंसक कहीं का !” कहते हुवे संजय का सीना गर्व से तन गया !  

-पियुष द्विवेदी ‘भारत’

 

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Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 7:28am
शालिनी जी.. धन्यवाद !
Comment by वीनस केसरी on December 3, 2012 at 12:13am

भाई थोड़े में बहुत कुछ कह गये
हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 2, 2012 at 12:27pm

देखने में ये एक सामान्य सा वाकया  लगता है किन्तु इस छोटे से वाकये में विभिन्न पुरुषों की गृहस्थी के निमित्त दो अलग अलग मानसिकता परिलक्षित हो रही है इस लघु कथा में ही आप महसूस कर सकते हैं की किस युगल की जिन्दगी में खुशियों की खुशबु है और किस्मे खीज और सिर्फ गाडी चलानी है वाली बात दिखाई दे रही है बहुत अच्छा सन्देश देती लघु कथा हेतु हार्दिक बधाई पियूष जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 2, 2012 at 10:13am

ऐसे वाकिये समाज में व्याप्त हैं, और कितनी ही सुनीता जैसियों के कोमल स्वप्न जैसे कोई गुब्बारे को सुई चुभा कर फोड़ डाले, से बिखर जाते है....पति-पत्नी के रिश्ते में किसी भी तरह के अहंकार का किसी में भी होना, रिश्ते की मधुरता के लिए एक श्राप बन जाता है .

वहीं संवेदनशील हृदय से जीवन साथी को दोस्त समझ कर छोटी छोटी खुशियाँ एक दूसरे को देने से ज़िंदगी के सफ़र में सिर्फ प्यार और खुशियाँ ही मिलती हैं.

एक छोटे से वाकिये द्वारा बाखूबी पुरुष प्रधानता के विकृत स्वरुप को प्रस्तुत किया है. इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई पियूष जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 2, 2012 at 8:58am

सुनिता जैसियों को संजय जैसों का पारंपरिक साथ क्या मिलता है, ’मन की मन ही माहिं रही’ का उनके मन-हृदय पर मानों जीवनभर के लिये अकथनीय क्षोभ का बोझ सा लद जाता है. संजय जैसे चरित्रों को असंवेदनशील नहीं, शुद्ध भाषा में ’फ़टीचर’ कहा जा सकता है, जिनकी कर्तव्यहीनता पुरुष अहं के अतार्किक आवरण में संतोष पाती है. इन निर्लज्जों के लिए विजय जैसे संवेदनशील और सहयोगी पति हास्यास्पद ही हो सकते हैं.

वैवाहिक जीवन के इस अति सामान्य किन्तु अति व्यापक संदर्भ को समर्थवान लहजे में शब्द देने के लिए, पियुषजी, आपको हार्दिक धन्यवाद तथा असीम शुभकामनाएँ.

Comment by seema agrawal on December 2, 2012 at 12:15am

समाज के दोहरे चरित्र को आइना दिखाती कथा ...इस प्रकार के जुमले बहुत आम है आम तौर पर सुनने को मिल जाते हैं  अक्सर  हम लोग इन्हें हँस कर टाल देते हैं पर कहीं न कहीं ये इशारा तो करते ही हैं विकलांग मानसिकता की ओर ...संवेदना को महसूस कर उचित शब्दों में ढाला है आपने ...बधाई 

Comment by ajay sharma on December 1, 2012 at 9:40pm

bahut khoob ,,it shows an immense treasure of feelings, & emotions of the writer , to my mind .... it happens to everybody's  life but we fail to pick it up, the writer like you , i must thank you , storied nicely the emotions & counter emotions of our relation    

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 1, 2012 at 7:15pm

बदलते वक्त के दौर में पीछे रह गये लोग कुछ इस तरह बोल कर ही अपनी खीज उतार सकते हैं.सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें आ. पियूष जी. 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2012 at 3:58pm

एक अच्छा सन्देश दे रही है आपकी ये छोटी सी कथा
और ये विचारों का खेल हैं किसी के लिए प्यार
और किसी के लिए बीबी की गुलामी
अपने अपने दृष्टिकोण हैं

Comment by shalini kaushik on December 1, 2012 at 3:33pm

true presentation of feelings .

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