For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘रेप’ को जोकर सरीखों ने कहा जब बचपना - ग़ज़ल

2122    2122    2122    212

*******************************
एक   सरकस   सी   हमारी   आज  संसद  हो गयी
लोक हित की इक नदी जम आज हिमनद हो गयी
**
जुगनुओं से  खो  गये  लीडर  न  जाने फिर कहाँ
मसखरों  की आज  इसमें  खूब  आमद  हो गयी
**
‘रेप’ को  जोकर  सरीखों ने  कहा  जब  बचपना
जुल्म  की  जननी खुशी से  और गदगद हो गयी
**
दे  रहे  ऐसे  बयाँ,  जो   जुल्म   की   तारीफ  है
क्योंकि  सुर्खी  लीडरों का आज मकसद हो गयी
**
जुल्म  की  सरहद   बढ़ी   बेहद  हदों को पार कर
इस चमन में और  छोटी  न्याय की जद हो गयी
**
नित  सियासत   सींचती  पर  खाद  हम देते रहे
भ्रष्टता की  बेल  बढ़कर, जिससे  बरगद हो गयी
**
प्यार  धर्मो  ने  सिखाया   पुस्तकों  में  खूब पर
तोड़  नफरत  हर  हदें अब यार अनहद हो गयी
**
कल तलक जिनका कहा झूठ-सच बकबास था
कुर्सियों  पर  बैठते  हर   बात  मानद  हो गयी
**
रचना - 13 दिसम्बर 2013

मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on August 4, 2014 at 6:01pm

कल तलक जिनका कहा झूठ-सच बकबास था
कुर्सियों  पर  बैठते  हर   बात  मानद  हो गयी

आदरणीय श्री लक्ष्मण धामी जी आपकी ग़ज़ल खूबसूरत है लेकिन निम्न शेर मेरी समझ से एक शब्द की कमी के कारण बहर से खारिज हो रहा है अगर इस शेर को ऐसा कर दिया जाए तो कैसा रहेगा
कल तलक जिनका कहा "हर" झूठ सच बकवास था
कुर्सियों पर बैठते वो बात मानद हो गई
इस प्रकार शेर बहर
फाइलातुन फाइलतुन फाइलातुन फाइलुन में आजाएगा
अन्यथा मत लेना! उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई

Comment by भुवन निस्तेज on August 4, 2014 at 1:40pm

कल तलक जिनका कहा झूठ-सच बकबास था
कुर्सियों पर बैठते हर बात मानद हो गयी

बहुत खूब, बधाई...

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 4, 2014 at 12:11pm

धामी जी

बहुत सुन्दर गजल i

जुगनुओं से  खो  गये  लीडर  न  जाने फिर कहाँ
मसखरों  की आज  इसमें  खूब  आमद  हो गयी
**
‘रेप’ को  जोकर  सरीखों ने  कहा  जब  बचपना
जुल्म  की  जननी खुशी से  और गदगद हो गयी
**

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 3, 2014 at 11:16pm

बहुत खूब भाई  !!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 3, 2014 at 9:19pm

कल तलक जिनका कहा झूठ-सच बकबास था
कुर्सियों  पर  बैठते  हर   बात  मानद  हो गयी

सोलह आने बात सही है… 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 3, 2014 at 8:13pm
कभी कभी तो लगता है कि हर शाख पे उल्लू बैठा है.....
हम भी पता नहीं किस चीज के बने हैं
ढूंढ ढूंढ के उल्लू लाते हैं ,
चुन चुन कर शाखों पर बैठाते हैं
और अंजामें गुलिस्तां से परेशान,
बेहद परेशान नज़र आते हैं.
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी रचना पर बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service