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स्वागत नववर्ष : दोहे

चौदह अब इतिहास है, पंद्रह से है आस.
समय सलौना कब रुका, क्षण भर अपने पास.
 
पल बीता तो कल हुआ, कल बीता तो मास.
पल पल गुजरे साल के, हर पल कल की आस,
 
खुशियाँ कितनी दे गया, गुजर गया जो साल.
जाते जाते कर गया, धरती को कुछ लाल.
 
बाँट रही खुशियाँ किरण, स्वागत है नववर्ष.
समय देव के नेह से, भर भर झोली हर्ष.
 
कल तक जो जन साथ थे, आज नहीं कुछ साथ.
परिवर्तन के दौर में, अपने खींचे हाथ.
 
काल चक्र चलता रहे, निशि दिन आठों याम.
सूर्य चन्द्रमा चल रहे, रुकने का क्या काम.
 
चलते रहना जिन्दगी, रुक जाना है मौत,
एक साथ रहती नहीं, मौत जिन्दगी सौत.
**हरिवल्लभ शर्मा
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by somesh kumar on December 22, 2014 at 11:15pm

ऐसी लेखनी को मन से करूं प्रणाम 

पढ़ के दोहभाव को मिलता है विश्राम 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2014 at 8:26pm

आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर आपकी दोहावली आखिर तक बाँधे रखती है वाह क्या लाजवाब प्रस्तुति है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by harivallabh sharma on December 22, 2014 at 5:42pm

आदरणीय  गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब बहुत सुन्दर दोहों से अभिभूत कर दिया आपने..वास्तव में हर सुह्रद इंसान के यही भाव होंगे...इतने ही सुन्दर नववर्ष की कल्पना की है..अच्छे दिनों की बाट जोहते नए वर्ष का स्वागत...हार्दिक आभार आपने अपना स्नेह दोहों के माध्यम से आलोड़ित किया ..सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2014 at 3:04pm
खुशियाँ कितनी दे गया, गुजर गया जो साल.
जाते जाते कर गया, धरती को कुछ लाल
विभु से मांगो मित्र तुम      अब ऐसा वरदान
नय वर्ष में शांत हो         मानव मन  शैतान
हो न धरा अब लाल फिर   महके मनस प्रसून
किसीअबोध अजान का     नाहक बहे न खून
सबके जीवन में खुशी           छा जाए भरपूर
अच्छे  दिन ज्यादा नहीं       भारत से अब दूर
कवि गाओ वह गीत अब जिससे सदा विकास
तन में हो उत्साह् प्रिय        मन में हो उल्लास
आपस में सद्भाव हो         सभी बने मन-मीत
ओज भरे स्वर में कवे !   महकाओ कुछ गीत 
Comment by harivallabh sharma on December 22, 2014 at 1:46pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी स्नेहिल टीप का ह्रदय से आभार.. दोहा पर अनुग्रह मिला ..सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 9:14am

हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर ....

क्या खूब दोहा कहा है -

"पल बीता तो कल हुआ, कल बीता तो मास.
पल पल गुजरे साल के, हर पल कल की आस"

 

Comment by harivallabh sharma on December 22, 2014 at 2:57am

प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय Hari Prakash Dubey जी ..कृपया स्नेह बनाये रखें..सादर.

Comment by Hari Prakash Dubey on December 21, 2014 at 5:16pm
काल चक्र चलता रहे, निशि दिन आठों याम.
सूर्य चन्द्रमा चल रहे, रुकने का क्या काम.....हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी !

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