For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घाव की मौजूदगी में - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122   2122    2122   2122

******************************
मन  किसी  अंधे  कुए  में  नित  वफ़ा  को  ढूँढता है
जबकि तन  लेकर हवस को रात दिन बस भागता है

*****
तार  कर  इज्जत   सितारे   घूमते  बेखौफ  होकर
कह रहे सब खुल के वचलना चाँद की भोली खता है

*****
जिंदगी  भर  यूँ  अदावत  खूब  की   तूने  सभी  से
मौत  के  पल  मिन्नतें  कर  राह  में क्यों रोकता है

****
जाँच  को  फिर  से  बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन
घाव   की   मौजूदगी    में    दर्द   कैसे  लापता  है

*****
आप ने  पूछा  कि  पलकें किस लिए  गीली  हमेंशा
गम रहे  हरदम  सलामत  अश्क  इसको  जागता है

*****
मिल  ही  जाते  हैं  अजाने   लोग  अक्सर  दोस्तों  से
कब मिला पर वो ‘मुसाफिर’ स्वप्न जिसको खोजता है

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 903

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Mathpal on January 29, 2015 at 8:03pm

आदरणीय धामी  जी,

काफी सुन्दर् रचना . दिली बधाई .

Comment by विनोद खनगवाल on January 29, 2015 at 6:21pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी। बहुत सुन्दर दिल के अहसासों को शब्दों के रूप में उकेरा है। मुझे बहुत अच्छी लगी।
Comment by gumnaam pithoragarhi on January 29, 2015 at 5:49pm

जाँच  को  फिर  से  बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन
घाव   की   मौजूदगी    में    दर्द   कैसे  लापता  है

वाह लक्ष्मण जी वाह ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है बधाई

Comment by Hari Prakash Dubey on January 29, 2015 at 5:40pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुन्दर प्रस्तुति ,इन पंक्तियों पर विशेष ध्यान अटकता है .....

जाँच  को  फिर  से  बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन

घाव   की   मौजूदगी    में    दर्द   कैसे  लापता  है…… हार्दिक बधाई ! सादर !

Comment by vijay on January 29, 2015 at 2:30pm
1000 लाइक्स
Comment by maharshi tripathi on January 29, 2015 at 2:14pm

वैसे तो आपकी हर रचना सुन्दर होती है ,,पर मुझे ये बहुत ख़ूबसूरत लगी |बधाई हो धामी जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 29, 2015 at 12:39pm

बहुत बढ़िया धामी जी i एकदम अलग हटकर नयी स्टाइल में i सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 11:41am
मन किसी अंधे कुए में नित वफ़ा को ढूँढता है
जबकि तन लेकर हवस को रात दिन बस भागता है ।
बहुत खूब आदरणीय लक्षमण धामी जी, बधाई, इस रचना पर, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
21 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service