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बेवकूफ कौन (लघुकथा)

"माँ, इस एफ.डी.आर. में भी नॉमिनी मुझे ही रखना, भैया सम्भाल नहीं सकता|"


"बेटे, मैं बराबर बांटना चाहती हूँ| उसको देख, तेरे पिताजी के देहांत के बाद उसने खुदके हक की सरकारी नौकरी तुझे दे दी और खुद प्राइवेट नौकरी में धक्के खा रहा है|"


"यही बात तो उसको बेवकूफ साबित करती है|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Omprakash Kshatriya on April 28, 2015 at 8:29pm
शानदार रचना आप की चंद्रेश जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2015 at 6:14pm

ओह !!

लघुकथा ने एकबारग़ी झकझोर दिया..

बधाइयाँ, आदरणीय

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 26, 2015 at 10:07pm

सुन्दर लघुकथा हुयी है,बधाई आदरणीय चंद्रेश जी!

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 26, 2015 at 1:29pm

आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी, आदरणीय  सविता मिश्रा जी, आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण जी सर, आदरणीय पंकज जोशी जी सर, आदरणीय  शिज्जू "शकूर" जी आप सभी का तहे दिल से आभार, रचना को पसंद करने के लिए और अपने अमूल्य सुझाव देने के लिये 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 26, 2015 at 1:27pm

आदरणीय गणेश जी बागी  सर, आपकी उपस्थिति और प्रोत्साहन तो बिरलों को ही मिलता है| आपका हृदय से आभारी हूँ..

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 26, 2015 at 1:26pm

आदरणीय भाई जीतेन्द्र जी हार्दिक आभार  आपका !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 26, 2015 at 9:51am

बहुत खूब आदरणीय चंद्रेशजी आजकल स्वार्थ हर दिल पर हावी है बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये

Comment by Pankaj Joshi on April 24, 2015 at 9:54am

सुंदर , चंद्रेश जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 23, 2015 at 2:14pm

आ० चंद्रेश जी

आख़री वाक्य इस कहानी में  अनावश्यक  है i यह नहीं होता तो भी कथा का वही अर्थ निकलता और शीर्षक हो जाता 'हक़' सादर ,

Comment by savitamishra on April 23, 2015 at 12:52pm

बहुत खूब

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