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त़रह़ी ग़ज़ल :मुझको वो मेरे नाम /श्री सुनील

221 2121 1221 212

कुछ दिन ठहर के आज ये तूफ़ान तो गया
अच्छा ! बना के अौर हीं इंसान तो गया.

था बेअदब मगर वो हुनरबाज़ था, मेरी
पत्थर सी ज़िंदगी में पिरो जा़न तो गया.

पीले से पड़ गये हैं मेरे पास जिसके ख़त
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया.

वर्षों के रब्त में यही बाकी हीं था अभी
सो आज हीं सही,मैं उसे जान तो गया.

मिलता रहा मैं जिससे लिपट कर खुशी खुशी
होने पे मेरे उसका चलो ध्यान तो गया.

मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 23, 2015 at 12:55pm

पीले से पड़ गये हैं मेरे पास जिसके ख़त
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया............  अच्छी ग़ज़ल के इस अच्छे शे र के लिये हार्दिक बधाइयाँ , आदरणीय सुनील भाई ।

Comment by Samar kabeer on July 22, 2015 at 4:26pm
जी हाँ, मेरा कहने का मतलब यही है।
Comment by shree suneel on July 22, 2015 at 12:27am
ग़ज़ल की सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय समर कबीर सर जी.
आपने एक मिसरे को चिन्हित किया है आदरणीय. क्या उसमें लय बाधित का आशय बह्र से है? सादर.
Comment by shree suneel on July 22, 2015 at 12:16am
सराहना औ' उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथलेश वामनकर सर. सादर
Comment by shree suneel on July 22, 2015 at 12:15am
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गुमनाम साहब. सादर
Comment by Samar kabeer on July 20, 2015 at 2:57pm
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"पत्थर सी ज़िंदगी में बो के जा़न तो गया"

ये मिसरा लय में नहीं है,कृपया देख लीजियेगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 19, 2015 at 9:39pm

आदरणीय सुनील जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 17, 2015 at 11:18am

वाह बहुत खूब ., अच्छी ग़ज़ल कही है बधाई

कृपया ध्यान दे...

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