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“ये देखो विज्ञान आज कितनी तरक्की कर रहा है कितनी अद्दभुत मशीन बना डाली, पुरुष भी महसूस करके देख सकते हैं अब प्रसव वेदना को|" टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में हेडिंग Chinese men get a taste of labor pain with a machine को पढ़ते हुए प्रोफ़ेसर बक्शी अपनी पत्नी से अचानक बोल उठे

”पापा क्या कभी कोई ऐसी मशीन भी बन पाएगी जो रेप के दर्द को भी पुरुष महसूस कर सकें” थोड़ी दूरी पर बैठी बेटी के अचानक इस प्रश्न ने पापा को अन्दर तक झिंझोड़ कर रख दिया बेटी के सिर पर हाथ फिराते हुए अपनी आँखों में आये  आँसुओं को छुपाने के लिए अन्दर चले गए|   

(मौलिक एवं अप्रकाशित)  

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Comment by pratibha pande on July 28, 2015 at 6:29pm

कथा का पुरुष संवेदनशील है  इसलिए आँखों में आंसू आये वरना आम पुरुष इस बात को कोरी भावुकता और किताबी बात  कहकर परे कर  देता I झटका देने वाली कहानी है आ० राजेश कुमारी जी 

Comment by विनोद खनगवाल on July 28, 2015 at 6:05pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, बहुत ही बेहतरीन संवेदनाओं से परिपूर्ण मार्मिक लघुकथा है। लघुकथा की पंच लाइन इतनी सशक्त और असरदार है पढते पढते आंखें नम हो गईं। बधाई स्वीकार करें।
जो कुछ वर्ड अंग्रेजी हैं अगर उनको हिंदी लिपि में लिखा जाए तो कथा और अच्छी लगेगी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 28, 2015 at 9:28am

प्रशांत प्रियदर्शी जी,इस लघु कथा ने आपको प्रभावित किया मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 28, 2015 at 9:27am

आ० रीता गुप्ता जी,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 28, 2015 at 9:26am

आ० डॉ० नीरज जी,लघु कथा के अनुमोदन हेतु आपका दिल से आभार |  

Comment by Prashant Priyadarshi on July 28, 2015 at 1:09am

वाह!! बेहतरीन कृति!! सोचने पर मजबूर करती हुई, पूर्णतः सामयिक एवं प्रासंगिक रचना.

Comment by Rita Gupta on July 28, 2015 at 12:16am

गजब ,बढ़िया .लाख टके का सवाल एक बच्ची के मुख से .

Comment by Dr. (Mrs) Niraj Sharma on July 27, 2015 at 11:28pm

बहुत ही मार्मिक रचना। सही सवाल बच्ची का। बधाई आ. राजेश कुमारी जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2015 at 10:03pm

आ० कांता जी ,लघु कथा के अनुमोदन हेतु दिल से आभार लीजिये | जिस देश में रेपिस्ट खुले घूमते हों ,या जेलों में मेहमान बना कर रखे हों उस देश से क्या उम्मीद कर सकते हैं कांता  जी .

Comment by kanta roy on July 27, 2015 at 9:57pm
सार्थक और संवेदनशील रचना हुई है यह आदरणीया राजेश जी । सच ऐसी भी मशीन आनी चाहिए जरूर !

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