For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सत्ता, धर्म और राजनीति (लघुकथा)

घर के मुख्य द्वार पर खाली प्लेट हाथ में लिए मालकिन को काम वाली बाई सन्नो ने आश्चर्य से देखते हुए पूछा:

"सब्ज़ी आज फिर सड़ गई थी क्या?"
"नहीं, पड़ोसी के घर से प्रसाद आया था, हम नहीं खाते उनके धर्म का प्रसाद, सो उस भूखे भिखारी को दे दिया"- मालकिन ने सन्नो से कहा।
सन्नो ने खिड़की से झांककर देखा कि वह भिखारी उसकी प्लेट में परोसा गया वह प्रसाद ज़ल्दी-ज़ल्दी खाने लगा था और कुछ निवाले पास खड़ी मरियल सी कुतिया के पास फेंकता जा रहा था।
"क्यों बाबा कौन से धर्म के हो तुम?" सन्नो ने भिखारी से पूछा।
"बाई, हमसे पूछ रही हो, या इस कुतिया से? हम दोनों का धर्म भूख ही है, अभी!" - भिखारी ने एक और निवाला कुतिया के सामने डालते हुए कहा और अपना हाथ चाटने लगा पेट की सत्ता अन्न की राजनीति से कुछ तो संतुष्ट हो रही थी।

[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 1169

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 4, 2016 at 8:51pm
रचना पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी। टिप्पणियों में आप सभी के पंचपंक्ति सुझाव से बिलकुल सहमत हूँ। दरअसल मुझे ऐसा लगा कि बतायी गई पंक्ति के साथ पहले ही कई लघुकथायें कही जा चुकी होंगीं, तो इस तरह पंक्ति कहते हुए अंत तक रचना को भिन्नता दी। अन्न व पेट की बात इसलिए ली, क्योंकि अन्न (प्रसाद) दो घरों से होते हुए भूखे भिखारी के पेट तक पहुंचा। मुद्दा केवल भूख का ही नहीं है, प्रसाद की यात्रा और गंतव्य (भूखों का पेट) है जहाँ धर्म का कोई अंतर/भेद नहीं है। किसी भी धर्म के प्रसाद से पेट पूजा होने के बाद भिखारी कहां, कौन से रूप में अपनी ज़रूरत पूरी करता है, निश्चित नहीं! अभी तो यही है अभीष्ट!
Comment by pratibha pande on June 4, 2016 at 8:11pm

  आपकी लेखनी से एक और  लाजवाब प्रस्तुति  //बाई, हमसे पूछ रही हो, या इस कुतिया से? हम दोनों का धर्म भूख ही है, अभी!"// इसे ही अंतिम पञ्च लाइन बनाना शायद ज्यादा  ठीक होता ....-हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर उस्मानी जी  

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 4, 2016 at 7:40am
मेरे इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर रचना का अनुमोदन करने व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 3, 2016 at 12:47pm

शानदार कटाक्ष किया है आ० उस्मानी जी ,और यही लोग होटलों रेस्टोरेंटों में जाकर खाना बड़े चाव से खाते है वहाँ तो कुक का धर्म नहीं पूछते | बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 2, 2016 at 9:50pm
रचना पर उपस्थित हो कर अपनी राय साझा करते हुए मुझे प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुशील सरना जी, आदरणीय राजेन्द्र कुमार दुबे जी व आदरणीया कल्पना भट्ट जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 2, 2016 at 9:49pm
रचना पर समय देकर इंगित पंक्ति पर विचार साझा करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी व आदरणीया कान्ता राय जी। दरअसल मुझे ऐसा लगा कि बतायी गई पंक्ति के साथ पहले ही कई लघुकथायें कही जा चुकी होंगीं, तो इस तरह पंक्ति कहते हुए अंत तक रचना को भिन्नता दी। अन्न व पेट की बात इसलिए ली, क्योंकि अन्न (प्रसाद) दो घरों से होते हुए भूखे भिखारी के पेट तक पहुंचा। मुद्दा केवल भूख का ही नहीं है, प्रसाद की यात्रा और गंतव्य (भूखों का पेट) है जहाँ धर्म का कोई अंतर/भेद नहीं है। किसी भी धर्म के प्रसाद से पेट पूजा होने के बाद भिखारी कहां, कौन से रूप में अपनी ज़रूरत पूरी करता है, निश्चित नहीं! अभी तो यही है अभीष्ट!
Comment by Sushil Sarna on June 2, 2016 at 7:05pm

''बाई, हमसे पूछ रही हो, या इस कुतिया से? हम दोनों का धर्म भूख ही है, अभी!"

वाह क्या पंच लाईन है आदरणीय उस्मानी साहिब ... इस संदेशात्मक बेहतरीन लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by Rajendra kumar dubey on June 2, 2016 at 5:31pm
आदरणीय उस्मानी जी बहुत ही बेहतरीन लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 3:24pm

सार्थक सृजन के लिए बधाई आदरणीय शहजाद भाई

\

Comment by kanta roy on June 2, 2016 at 10:48am
वाकई में आपकी यह लघुकथा भी बेमिसाल बनी है आदरणीय शहज़ाद जी । आदरणीय सौरभ जी से मै भी सहमत हूँ । कथा को वहीं पर खत्म होना चाहिए था । सार्थक सृजन के लिए बधाई प्रेषित है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
11 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
21 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service