For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क़िताब ख़ास लिखी जाएगी जो आज कोई (ग़ज़ल 'राज ')

1212  1122  1212  112/22

बह्र –मुजतस मुसम्मन मख्बून मक्सूर

 

तनाव से ही सदा टूटता समाज कोई

लगाव से ही सदा फूलता रिवाज कोई

 

पढ़ेगी कल नई पीढ़ी उन्हीं के सफ्हों को

क़िताब ख़ास लिखी जाएगी जो आज कोई

 

न ख़्वाब हो सकें पूरे कहीं बिना दौलत

बना सकी न मुहब्बत गरीब ताज कोई

 

सियासतों में बगावत नई नहीं यारों

कभी चला कहाँ आसान राजकाज कोई

 

सभी मिलेंगे यहाँ छोड़कर शरीफों को

कोई फरेबी यहाँ और चालबाज कोई  

 

नचा रहे सभी एक  दूसरे  को यहाँ  

बजा रहा कोई ढपली कहीं पे साज कोई  

 

पँहुचते ही नहीं पैसे गरीब तक पूरे

कमाई ले उड़े जब बीच में ही बाज़ कोई

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 14, 2016 at 10:11am
आदरणीया राजेश जी कमाल की ग़ज़ल हुयी है जिंदगी केकडवे सच को बखूबी उकेरा है आपनर हार्दिक बधाई स्वीकार करे सादरFG
Comment by Rahila on July 14, 2016 at 8:57am
बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुयी आदरणीय राजेश दीदी! किसी एक शेर की तारीफ करना मुश्किल होगा ।सभी लाज़बाब हैं।हार्दिक बधाई।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 13, 2016 at 6:09pm

आद० सतविन्द्र भैया ,आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 13, 2016 at 6:08pm

आ० शिज्जू भैया ,आपका बहुत- बहुत आभार उन्हें ठीक कर लूँगी सफहों शब्द ज्यादा सटीक होगा |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 13, 2016 at 6:07pm

आद० श्याम नारायण वर्मा जी ,आपका अतिशय आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 13, 2016 at 6:06pm

आद० समर भाई जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हो गया| आपकी इस्स्लाह सर आँखों पर मैं वरक का बहु  वचन वर्कों अर्थात  २२ ले लिया जबकि ११२ होना चाहिए ...मेरी गलती है इसे सफहों कर लूँगी | आपने सही कहा भाई जी छाते शेर के उला में हैं न जाने कैसे रह गया पोस्ट करने से पहले कई बार पढ़ी भी | मूल  पोस्ट  में सुधार कर लिया है इधर भी कर लूँगी |

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 13, 2016 at 5:00pm
उम्दा ग़ज़ल!नमन आदरणीया राजेश दीदी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2016 at 4:50pm
आ. राजेश दीदी अच्छे अश'आर हुये है,
जनाब समर साहब से मैं इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ,दूसरे शे'र में वर्कों की जगह सफ़्हों या पन्नों करना मुनासिब होगा।
Comment by Shyam Narain Verma on July 13, 2016 at 3:48pm

बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को | सादर 

Comment by Samar kabeer on July 13, 2016 at 3:38pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,ग़ज़ल बहुत उम्दा और शानदार हुई है, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
दूसरे शैर के ऊला मिसरे में "वर्क़ों" को "सफहों'करना मुनासिब होगा क्योंकि उर्दू में सही शब्द है 'वरक़'न कि "वर्क़" देख लीजियेगा ।
छटे शैर के ऊला मिसरे में एक शब्द टाइपिंग मिस्टेक से छूट गया है :-
"नचा रहे हैं सभी एक दूसरे को यहाँ"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
4 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आ. आज़ी तमाम भाई,अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.जैसे  इल्म का अब हाल ये है…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आ. सुरेन्द्र भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बोझ भारी में वाक्य रचना बेढ़ब है ..ऐसे प्रयोग से…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेंदर भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई आपको , गुनी जन की बातों का ख्याल कीजियेगा "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय आजी भाई , ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है , दिली बधाई स्वीकार करें "
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service