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ग़ज़ल -मेरा ग़रीब खाना है ऊँचे भवन के बाद - ( गिरिराज )

( अज़ीम शायर मुहतरम जनाब कैफ़ी आज़मी साहब की ज़मीन पर एक प्रयास )

221  2121   1221    212

मुझको कहाँ अज़ीज़ है कुछ भी चमन के बाद
क्या मांगता ख़ुदा से मैं हुब्ब-ए-वतन के बाद


तहज़ीब को जो देते हैं गंग-ओ-जमुन का नाम
ये उनसे जाके पूछिये , गंग-ओ-जमन के बाद ?


वो लम्स-ए-गुल हो, या हो कोई और शय मगर
दिल को भला लगे भी क्या तेरी छुवन के बाद


वो चिल्मनों की ओट से देखा किये असर
बातों के तीर छोड़ के हर इक चुभन के बाद

 

रहती है बेक़रार पर आती नहीं है धूप
मेरा ग़रीब खाना है ऊँचे भवन के बाद


ना आशना तू क्या हुआ ,सारा जहाँ मुझे
लगने लगा है आशना उस अंजुमन के बाद

 

ऐ मेरी नज़्म बोल क्या तू भी उदास है ?

ग़मगीन जैसे मैं हुआ , तर्क़े सुखन के बाद

****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 16, 2017 at 5:15pm

आदरणीय समर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार् ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 16, 2017 at 5:15pm

आदरणीय मो. आरिफ भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 7, 2017 at 10:17pm
रहती है बेक़रार पर आती नहीं है धूप
मेरा ग़रीब खाना है ऊँचे भवन के बाद.. बेहतरीन जबरजस्त..नमन है लेखनी को
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 7, 2017 at 8:41pm

ऐ मेरी नज़्म बोल क्या तू भी उदास है ?

ग़मगीन जैसे मैं हुआ , तर्क़े सुखन के बाद======== आ० अनुज इस सच्चे शेर ने  अवसन्न कर दिया , आ० सौरभ जी ने बिलकुल सही कहा .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2017 at 4:05pm

आदरणीय गिरिराज भाई साब एक से बढ़ कर एक शेर हुए है लेकिन इस बेहतरीन ग़ज़ल के ये शेर तो वाकई जितनी तारीफ़ की जाए कम है ..सादर प्रणाम के sath

तहज़ीब को जो देते हैं गंग-ओ-जमुन का नाम 
ये उनसे जाके पूछिये , गंग-ओ-जमन के बाद ?

वो चिल्मनों की ओट से देखा किये असर 
बातों के तीर छोड़ के हर इक चुभन के बाद

 

रहती है बेक़रार पर आती नहीं है धूप 
मेरा ग़रीब खाना है ऊँचे भवन के बाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 6, 2017 at 9:04pm

वाह्ह्ह वाह्ह्ह बेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आद० गिरिराज जी दिल से दाद क़ुबूल फरमावें 

Comment by Samar kabeer on February 6, 2017 at 8:58pm
मित्रो,जनाब गिरिराज भंडारी जी इस वक़्त हैदराबाद में हैं,उसके बाद उन्हें बैंगलोर जाना है,मुझे उन्होंने अभी इत्तिला दी है कि मंच को इसकी सूचना देदूं वो 16 तारीख़ तक लौटेंगे,हमारी दुआ है उनका सफ़र कामयाब रहे ।

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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2017 at 8:47pm
आदरणीय गिरिराज सर, क्या खूब गज़ल कही है आपने। लाज़वाब। दाद ही दाद दिल से।
Comment by डॉ पवन मिश्र on February 6, 2017 at 7:18am

आद. गिरिराज जी। क्या खूब ग़ज़ल कही आपने। शेर दर शेर मुबारकबाद। आकाश भर बधाई

Comment by दिनेश कुमार on February 6, 2017 at 6:56am
बहुत उम्दा ग़ज़ल सर। वाह वाह वाह
सभी शेर बहुत अच्छे हुए हैं।
इन्सां की ख़्वाहिशों की कोई इंतेहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिये दो गज़ कफ़न के बाद
मुबारकबाद।

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