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इश्क में खुद जाँ लुटाने आ गए (ग़ज़ल 'राज')

हाजिरी वो ज्यों  लगाने आ गए

याद उनको फिर बहाने आ गए

 

मुट्ठियों में वो नमक रखते तो क्या 

जख्म हमको भी छुपाने आ गए

 

चल पड़े थे हम कलम को तोड़कर

लफ्ज़ हमको खुद बुलाने आ गए

 

जेब मेरी हो गई भारी जरा 

दोस्त मेरे आजमाने आ गए

 

रोज लिखना शायरी उनपर नई  

याद हमको वो फ़साने आ गए

 

शमअ इक है लाख परवाने यहाँ 

इश्क में खुद जाँ  लुटाने आ गए  

 

झील में अश्जार के धुलते  बदन

कुछ परिंदे भी नहाने आ गए 

 

देख कर आकाश पर कौस-ए-क़ज़ह  

लोग आँखों से चुराने आ गए  

 

आशनाई उनकी आँखों से कमाल

अश्क मेरे झिलमिलाने आ गए

 

हाथों पैरों में हिना गीली मगर

बज़्म की रौनक बढाने आ गए

------मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 3, 2017 at 7:17am
मुहतर्मा राजेश कुमारी साहिबा ,अच्छी ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
Comment by Gurpreet Singh jammu on April 3, 2017 at 6:05am
आदरणीया राजेश जी.शुक्रिया..अश्जार और कौस-ए-क़ज़ा वाले अशआर के अर्थ अब समझ आए..बहुत ही लाजवाब अशआर हैं दोनो.
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2017 at 10:25pm

वाह वाह .. आ दीदी... बहुत खूब 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2017 at 8:05pm

आद० गुरप्रीत सिंह जी  ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत- बहुत शुक्रिया | दो शब्दों के अर्थ दे रही हूँ जो भूल वश पोस्ट करते वक़्त नहीं लिख पाई थी ---अश्जार -बहुत सारे वृक्ष 

कौस-ए-क़ज़ा -इन्द्रधनुष 



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2017 at 8:03pm

आद० महेंद्र कुमार  जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत- बहुत शुक्रिया |



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2017 at 8:02pm

आद० अनुराग वशिष्ट जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत- बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2017 at 8:01pm

आद० समर भाई जी आपने मेरा सब संशय दूर कर  दिया मतला अब बेहतर हो गया इसे संशोधित कर लूँगी 

आपने पुनः इस ग़ज़ल को वक़्त दिया जिसके लिए बेहद शुक्रगुजार हूँ भाई जी ये स्नेह यूं ही बनाए रखियेगा |

Comment by Gurpreet Singh jammu on April 2, 2017 at 7:33pm
आदरणीया राजेश जी बहुत ही शानदार गज़ल कही ही आपने
मुट्ठियों में वो नमक रखते तो क्या
जख्म हमको भी छुपाने आ गए

चल पड़े थे हम कलम को तोड़कर
लफ्ज़ हमको खुद बुलाने आ गए

जेब मेरी हो गई भारी जरा
दोस्त मेरे आजमाने आ गए
वाह वाह क्या बात है ..
अश्जार का अर्थ बताएँ प्लीज़
Comment by Mahendra Kumar on April 2, 2017 at 7:08pm
आदरणीया राजेश मैम, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by Samar kabeer on April 2, 2017 at 6:01pm
मतले के भाव जो आपने बताये मैंने भी वही समझे ,एक तो ये कि ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर भी है 'केवल लगाने',फिर भी आप यूँ ही रखना चाहती हैं तो,मतला यूँ कहना होगा,तब आपके बताये भाव आएंगे :-
'हाज़िरी ज्यूँ ही लगाने आ गए
याद उनको फिर बहाने आ गए'
सही शब्द 'कौस-ए-क़ज़ह'ही है, 'कौस-ओ-क़ज़ह'लिखने से दो शब्द हो जाते हैं,'कौस' व् 'क़ज़ह'जो शब्द मैंने बताया है मुस्तनद शब्द कोष का है, और ये स्त्रीलिंग शब्द है ।
अब आपका दूसरा सवाल,सही शब्द है 'निबाह'जिसे 'निभा' भी कर लिया जाता है ।

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