भाषा बड़ी है प्यारी जग में अनोखी हिन्दी,
चन्दा के जैसे सोहे नभ में निराली हिन्दी।
पहचान हमको देती सबसे अलग ये जग में,
मीठी जगत में सबसे रस की पिटारी हिन्दी।
हर श्वास में ये बसती हर आह से ये निकले,
बन के लहू ये बहती रग में ये प्यारी हिन्दी।
इस देश में है भाषा मजहब अनेकों प्रचलित,
धुन एकता की डाले सब में सुहानी हिन्दी।
शोभा हमारी इससे करते 'नमन' हम इसको,
सबसे रहे ये ऊँची मन में हमारी हिन्दी।
आज हिन्दी दिवस पर
22 122 22 // 22 122 22 बहर में
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरनीय वासुदेव भाई , हिन्दी की महिमा गान गज़ल के रूप मे अच्छी लगा , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय बासुदेव जी,
मैंने अपनी जानकारी के लिए पूछा था शायद जनाब समर कबीर साहब कुछ प्रकाश डाल सकें.
सादर
आदरणीय बासुदेव जी,
अरकान तो मैंने देख लिए थे मेरा मतलब इस बह्र के नाम से था. अरकान देखने से यह मुतकारिब मुसद्दस मुजायफ़ की कोई महजूफ बह्र लगती है लेकिन मुतकारिब मुसद्दस की कोई महजूफ बह्र मेरी जानकारी में ऐसी नहीं है जिसके अरकानों का क्रम ऐसा हो.
सादर
सुन्दर अभिव्यक्ति , बधाई आदरणीय
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