For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुद से मुझ को अलग करो----- ग़ज़ल पंकज मिश्र द्वारा

22 22 22 22

खुद से मुझ को अलग करो तो
फिर कहना तुम ज़िंदा भी हो

याद मुझे करते हो तुम भी
हिचकी से ये कहलाया तो

कोल कर दिया अरमाँ जिससे
कोहेनूर बन कर चमकें वो

दुर्लभ एक सुकून प्यास में
साक़ी को ही लौटाया तो

बदली छाई मानो तुमने
ज़ुल्फ़ घनी फिर बिखराया हो


मौलिक अप्रकाशित

मौलिक अप्रकाशित

Views: 826

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 11, 2017 at 8:44pm
आदरणीय रामबली सर आपके सुझाव उपयोगी हैं, सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 11, 2017 at 8:42pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर सादर आभार
Comment by रामबली गुप्ता on September 20, 2017 at 11:38am
मेरे सुझाव के अनुसार दुसरे शैर में कथ्य का भाव आपके कहन से कुछ भिन्न हो गया है। इसे इस प्रकार कर ले-

करते हो तुम भी याद मुझे,
ये हिचकी से कहलाया तो।
Comment by रामबली गुप्ता on September 20, 2017 at 8:55am
आदरणीय पंकज मिश्र जी मात्रिक बहर पर प्रयास अच्छा है। सादर बधाई स्वीकारें। बताना चाहूँगा कि इस बहर में लय और प्रवाह ही महत्वपूर्ण होता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि पंक्तियाँ पूरी तरह बहर में होने के बाद भी लय नही बन पाती। अतः इस बात को ख़ास ध्यान देने की जरूरत होती है। सच बताऊँ तो मतले में ही लय बाधित है। जरा मतले को इस प्रकार कह कर देखिये-

खुद से तो मुझको अलग करो,
फिर कहना तुम जिन्दा भी हो।,,,,,,फर्क आप स्वयं समझिये।
इसी प्रकार दुसरे शैर को इस प्रकार कहें-

तुम करते भी हो याद मुझे,
ये हिचकी से कहलाया तो। कथ्य व् प्रवाह देखिये अब।

तीसरे शैर में कोहेनूर को कोहिनूर कर दीजियेगा बात बन जायेगी।

चौथे शेर में काफी तब्दीली की आवश्यकता है वैसे एक प्रयास करता हूँ-
तनिक सुकूँ ही सही प्यास में,
लौटाया साकी को ही तो।।,,,, अब देखिये

अंतिम शैर को बस थोड़ा हेर फेर करें -

बदली छाई मानो तुमने,
घनी ज़ुल्फ़ बिखराया फिर हो।

ये सब सुझाव मात्र हैं। जिन्हें मानना न मानना रचनाकार की अपनी स्वतंत्रता है।

शेष सब शुभ शुभ। सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 19, 2017 at 4:29pm
हार्दिक बधाई ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 18, 2017 at 7:24pm
आदरणीय बाऊजी सुझाव के लिए सादर आभार और प्रणाम
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 18, 2017 at 7:24pm
आदरणीय मुकेश सर बहुत बहुत आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 18, 2017 at 7:24pm
आदरणीय गिरिराज सर सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 18, 2017 at 7:24pm
आदरणीय शिज़्ज़ु शकूर सर बहुत बहुत आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 18, 2017 at 7:23pm
आदरणीय मोहित जी सादर आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service