हमने एक दुनिया उजाड़ दी
शेरों और नील गायों की
ख़रीद ली उनकी खाल
बारह सींगों के
सींगों से कर रहे हैं
घर की दीवारों का श्रृंगार
अब आदमखोर
शेरों को नहीं
इंसानों को कहना होगा बेहतर
हिंसक हरकतें सारी
चुरा ली है
शेरों से इंसानों ने
कितने ही लक्षण आ गए हैं
पशुओं वाले इंसानों में
ऐसे में लाजमी है
जंगलों का ख़त्म होना
शेरों का ख़त्म होना ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Comment
बहुत-बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।
कोटि कोटि बधाई ।
रचना पर संक्षिप्त प्रतिक्रिया से सुशोभित करने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय सतविंद्र कुमार जी ।
उत्त्माभिव्यक्ति आदरणीय मोहह्म्म्द आरिफ साहब
बहुत-बहुत आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी ।
इस बढ़िया कविता हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आ. मोहम्मद आरिफ़ जी. सादर.
कविता पर विचारात्मक और सुधारात्मक टिप्पणी देने का बहुत-बहुत आभार आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब । आपकी इस्लाह सर आँखों पर । मैं सुधार कर लूँगा ।
रचना के अनुमोदन और हौसला अफजाई का बहुत-बहुत आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी ।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,अच्चबी और सच्ची कविता लिखी,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'शेरों और नील गायों की
खरीद ली उनकी खाल'
इन पंक्तियों को यूँ लिखें:-
"शेरों और नील गायों की
ख़रीद ली हमने खाल"
'अब आदम ख़ोर
शेरों को नहीं
इंसानों को कहना होगा बहतर'
इसमें से 'बहतर' शब्द निकाल दें ।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी, पर्यावरण असंतुलन के प्रति चिंता दर्शाती बहुत ही उम्दा रचना । बधाई स्वीकार करें ।
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