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ग़ज़ल...तुम्हारी याद का मौसम--बृजेश कुमार 'ब्रज'

1222 1222 1222 1222
हमें जब आज़माता है तुम्हारी याद का मौसम
सुकूँ भी साथ लाता है तुम्हारी याद का मौसम

ग़मों ने कोशिशें तो लाख कीं पलकें भिंगोने की
लबों पर मुस्कुराता है तुम्हारी याद का मौसम

हमारे रूबरू ठहरो कभी पल भर तो समझाएं
हमें कितना सताता है तुम्हारी याद का मौसम

इसे मैं छोड़ आता हूँ कहीं सुनसान सहरा में
मगर फिर लौट आता है तुम्हारी याद का मौसम

वहाँ तुम हो तुम्हारी पुरकशिश कमसिन अदाएं हैं
यहाँ 'ब्रज' गुनगुनाता है तुम्हारी याद का मौसम
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by Samar kabeer on December 19, 2017 at 5:25pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

जनाब अफ़रोज़ साहिब की बातों का संज्ञान लें ।

Comment by Sushil Sarna on December 19, 2017 at 4:53pm

वाह बहुत सुंदर अशआर , खूबसूरत अहसास , ... इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।

Comment by Ajay Tiwari on December 19, 2017 at 3:16pm

आदरणीय बृजेश जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई. 

 

Comment by नाथ सोनांचली on December 19, 2017 at 1:55pm

आद0 ब्रजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल कहीं आपने।बहुत बहुत बधाई आपको।शेष आद0 अफरोज जी के बातों का संज्ञान लीजियेगा।सादर

Comment by Afroz 'sahr' on December 19, 2017 at 1:11pm
आदरणीय ब्रजेश जी इस रचना पर बधाई आपको । कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं । इसे दूर करलें, "आजमाता" को आज़माता करलें, "सकूँ" को सुकूँ करलें, "लवों" को लबों करलें, चौथे शेर का ऊला मिसरा "इसे में छोड़ तो आऊं कहीं सुनसान सहरा में" में संभावना जताई गई है। अर्थात अभी याद का मौसम सुनसान सहरा में छोड़ा नहीं है तो फिर सानी मिसरे " मगर फिर लौट आता है तुम्हारी यादका मौसम" के मुताबिक याद का मौसम कैसे लौट सकता है।
ऊला मिसरे को यूँ किया जा सकता है,,,

" इसे में छोड़ आता हूँ कहीं सुनसान सहरा में",,,,,
Comment by Mohammed Arif on December 19, 2017 at 7:58am

आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब,

                                बहुत ही प्यारे अश'आरों से सजी ग़ज़ल । हर शे'र बढ़िया । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी अमूल्य राय साझा करेंगे ।

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