For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-नूर की -ईमान छोड दूँ तो क़िरदार मार देगा,

२२१२ १२२ २२१२ १२ २
.
ईमान छोड दूँ तो क़िरदार मार देगा,
इस पार बच गया तो उस पार मार देगा.
.
आदत सी पड़ गयी है अब नफ़रतों की मुझ को
इतना न मुझ को चाहो ये प्यार मार देगा.
.
कितना बचाऊँ लेकिन है तज्रबा... मुकद्दर,
इक रोज़ मेरे सर पर दीवार मार देगा.
.
ये हक़ बयानी का इक औज़ार था मगर अब,
सच बोल दे कलम गर अख़बार मार देगा. 
.
कोचिंग की आशिक़ी में वह मुँह चिढ़ाता शनिचर,
लगता था जैसे हम को इतवार मार देगा.
.  
बोली बढ़ा घटा के बिक जाऊं तो ग़नीमत,
जो बिक न पाए उन को बाज़ार मार देगा.
.
ऐ कामयाबी तेरी मैं राह तक रहा हूँ
इस बार वरना तेरा इन्कार मार देगा.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 13, 2018 at 1:59pm

शुक्रिया आ सुरेंद्र भाई

Comment by surender insan on March 11, 2018 at 4:40pm

वाह वाह वाह बेहद उम्दा ग़ज़ल की बहुत बहुत बधाई हो आपको। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 11, 2018 at 4:38pm

शुक्रिया आ, लक्ष्मण जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 11, 2018 at 2:42pm

आ. भाई नीलेश जी, इस बोलती गजल के लिए कोटि कोटि बधाई ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 11, 2018 at 10:43am

क्या कहने आदरणीय नीलेश जी..बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 10, 2018 at 8:25am

शुक्रिया आ. तस्दीक़ अहमद जी. मैं किरदार वाले टाइपिंग एरर को ठीक कर लेता हूँ ..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 10, 2018 at 8:24am

शुक्रिया आ. सतविंदर सिंह जी 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 9, 2018 at 8:43pm

जनाब नीलेश नूर साहिब , उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमाएं।

शब्द "क़िरदार" को किरदार कर लीजियेगा ,शेर5 उला मिसरे की बह्र एक बार चेक कर लें । मतले के हिसाब से बह्र -मफ ऊल-फ़ा इलातुन-म फ ऊल-फ़ा इलातुन  (221-2122-221-2122)है।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 9, 2018 at 8:23pm
आदरणीय नीलेश भाई,गजब के अशआर हैं। हर शेर पर दाद कबूल फरमाएं। कोचिंग वाले पर ख़ास!
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 9, 2018 at 8:04pm

शुक्रिया आ. वर्मा जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
1 hour ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
yesterday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service