For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (मेरी आँखों में तस्वीरे दिलदार है )

(फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन)

हो रहा उनका हर वक़्त दीदार है |
मेरी आँखों में तस्वीरे दिलदार है |

कुछ तो है दोस्तों शक्ले महबूब में
देखने वाला कर बैठता प्यार है |

उनका दीदार मुमकिन हो कैसे भला
उनके चहरे पे बुर्क़े की दीवार है |

मुझ पे तुहमत दग़ा की लगा कर कोई
कर रहा ख़ुद को साबित वफ़ादार है |

चाहे दीदारे दिलबर ,दवाएं नहीं
वो हकीमों मुहब्बत का बीमार है |

उसको क्या वारदाते जहाँ की ख़बर
जो पढ़े ही नहीं रोज़ अख़बार है |

चाहे कुछ भी हो अंजाम तस्दीक़ अब
कर दिया उनसे उल्फ़त का इज़्हार है |

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 2094

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Tiwari on March 14, 2018 at 11:03pm

आदरणीय समर साहब,

इधर बहुत सारा वक़्त ऐसी व्यस्तताओं में जाया हुआ है जिनका साहित्य से कोई लेना देना नहीं है इसलिए मंच पर हाजिर नहीं हो सका, 

पिछली टिप्पणियाँ सफ़र से लौटते हुए की गयी त्वरित टिप्पणियाँ थी. गाड़ी में हिल हिल के ग़ालिब और नासिर काज़मी का अमलगम बन गया. खैर. शेर गलत जरूर था तथ्य मेरे ख़याल से ठीक है. 

ईता दोष शब्द के बढे हुए अंशो की समानता पर निर्भर करता है. जैसे रोता और आता में बढ़ा हुआ अंश ता है लेकिन उसके पहले का स्वर सामान नहीं है इसलिए ये हमकाफिया नहीं हो सकते लेकिन यहाँ बात और है :

दीदार = दीद + आर 

दिलदार = दिल + दार 

दोनों शब्दों के बढे  हुए अंश सामान नहीं है इसलिए यहाँ ईता दोष नहीं हो सकता. अर्थ की भिन्नता के बारे में पहले कह चूका हूँ . 

सादर 

Comment by Samar kabeer on March 14, 2018 at 9:36pm

जनाब अजय तिवारी साहिब आदाब,बहुत दिन बाद आपके दर्शन हुए?

आपने मेरा संकेत समझ लिया ।

मतले में यक़ीनन ईता दोष है,मैं इस बिंदु पर जनाब निलेश साहिब से सहमत हूँ,अगर आप इसे ईता नहीं मानते तो बराह-ए-करम बताएँ कि इस दोष को क्या कहते हैं? और आज तो आपने ग़ज़ब कर दिया कि ग़ालिब और नासिर काज़मी के मिसरों को  और वो भी अलग अलग बहूर के,मतला बना दिया,भाई आप तो ऐसे न थे ।

Comment by Ajay Tiwari on March 14, 2018 at 9:13pm

आदरणीय निलेश जी,

मेरे प्रत्युलर से पहले आपकी दूसरी पोस्ट भी आ गई. मैं अभी सफ़र में हूँ. इस विषय फिर लौटता हूँ.  

Comment by Ajay Tiwari on March 14, 2018 at 9:06pm

आदरणीय निलेश जी,

दो शेर ओवरलैप हो गए. ग़ालिब का मतला ये है :

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तश्ना-ए-फ़रियाद आया

मैंने  ने अपनी राय रखी है और वो गलत भी हो सकती है.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2018 at 8:46pm

आ. अजय जी ..
ग़ालिब साहब की जिस ग़ज़ल का आप ज़िक्र कर रहे हैं वो कुछ यूँ है..
.

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया

दिल जिगर तिश्ना-ए-फ़रियाद आया

दम लिया था क़यामत ने हनूज़

फिर तिरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया

सादगी-हा-ए-तमन्ना यानी

फिर वो नैरंग-ए-नज़र याद आया

उज़्र-ए-वामांदगी हसरत-ए-दिल

नाला करता था जिगर याद आया

ज़िंदगी यूँ भी गुज़र ही जाती

क्यूँ तिरा राहगुज़र याद आया

क्या ही रिज़वाँ से लड़ाई होगी

घर तिरा ख़ुल्द में गर याद आया

आह वो जुरअत-ए-फ़रियाद कहाँ

दिल से तंग के जिगर याद आया

फिर तिरे कूचे को जाता है ख़याल

दिल-ए-गुम-गश्ता मगर याद आया

कोई वीरानी सी वीरानी है

दश्त को देख के घर याद आया

मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'

संग उठाया था कि सर याद आया .
यानी तर, फर, घर आदि क़वाफ़ी है ..और याद आया रदीफ़ है..
अस्तु:
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2018 at 8:31pm

आ. अजय जी 
.

दिल जिगर तिश्नालब फ़रियाद आया 

वो तेरी याद थी अब याद आया ....
इन दो मिसरों की तक्तीअ कर के देखिये ..शायद ही ग़लिब ने ऐसा कहा होगा..
सानी मिसरा नासिर काज़मी साहब के मतले का सानी है ....
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी अब याद आया....
अगर नासिर साहब ने तरही ग़ज़ल भी कही है तो ये संभावना नगण्य है कि वो मतले में तरही मिसरा रखेंगे ..
.
आप अपनी टिप्पणी का पुनरावलोकन कीजिये और इता को इता ही समझिये 
सादर 

Comment by Ajay Tiwari on March 14, 2018 at 8:28pm

आदरणीय तस्दीक साहब,

आदरणीय निलेश जी ने इता की संभावना जताई है लेकिन मेरे ख़याल से इता तो नहीं है क्योकि मतले के दोनों 'दार' में अर्थ का फर्क है.

दिल जिगर तिश्नालब फ़रियाद आया 

वो तेरी याद थी अब याद आया  - ग़ालिब   यहाँ दोनों 'याद के अर्थ अलग है. इसलिए काफिया ठीक है.

आदरणीय समर साहब का संकेत मेरे ख़याल से वाक्य संरचना की तरफ है.

ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2018 at 7:52pm

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है आ. तस्दीक़ साहब..
मतले में   ईता दोष है शायद..
देखिएगा 
सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 14, 2018 at 3:19pm

मुहतरम जनाब समर साहिब आदाब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का
बहुत बहुत शुक्रिया | बुर्क़े की मिसाल दीवार से मेरे हिसाब से सही है क्योकि वो भी एक
चेहरे पर पर्दा ही तो है , आपके हिसाब से हो सकता है सही न हो | पढ़े ----पढ़ता , यह लोकल
ज़बान का लफ्ज़ है जो उत्तर प्रदेश में कई जगह बोला जाता है | जैसे ---करे है ----करता है
चले है ---चलता है , उधर शोरा अक्सर इन लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करते हैं , यह मेरी भी आदत
में है ----सादर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 14, 2018 at 3:08pm

जनाब हर्ष महाजन साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का
बहुत बहुत शुक्रिया |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service