अरकान:-12112 12112
न छाँव कहीं,न कोई शजर
बहुत है कठिन,वफ़ा की डगर
अजीब रहा, नसीब मेरा
रुका न कभी,ग़मों का सफ़र
तलाश किया, जहाँ में बहुत
कहीं न मिला, वफ़ा का गुहर
तमाम हुआ, फ़सान: मेरा
अँधेरा छटा, हुई जो सहर
ग़मों के सभी, असीर यहाँ
किसी को नहीं, किसी की ख़बर
बहुत ये हमें, मलाल रहा
न सीख सके, ग़ज़ल का हुनर
हबीब अगर, क़रीब न हो
अज़ाब लगे, हयात "समर"
"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बाऊजी प्रणाम
क्या कहने........ग़ज़ल का एक और प्रतिमान पेश किया है आपने... सीखने के लिए बेहतर उदाहरण
कठिन बहर पर बढिया ग़ज़ल कही आदरणीय ! हार्दिक बधाई
आदरणीय समर कबीर जी, बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है हार्दिक बधाई । एक नई बह्र से परिचित कराने के लिए आभार।
samar ji pranam, bahut khub huzur
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