हर चूहा चालाक है, ढूँढे सही जहाज
डगमग दिखा जहाज ग़र, कूद भगे बिन लाज
सजी हाट में घूमती, बटमारों की जात
माल-लूट के पूर्व ही, करती लत्तमलात
नाटक के इस मंच पर, पीटे जोकर ढोल
उलटबासियाँ चेंपता, चीखे - ’खोला पोल’
भौंरों को उम्मीद थी, खिलें उपट के फूल
पर वो आँधी चल पड़ी, धूल धूल बस धूल
दर्शक भौंचक हो रहे, देख पात्र के टेक
उठा-पटक तो मंच पर, पर्दा पीछे एक
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-सौरभ
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
सामयिक और सार्थक के साथ ही रुचिकर दोहे ! हार्दिक बधाई श्री सौरभ भाई जी
आदरणीय सौरभ सर बहुत सुंदर l वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर बहुत ही सार्थक दोहे कहे हैं बहुत बहुत बधाई आपको
हर चूहा चालाक है, ढूँढे सही जहाज
डगमग दिखा जहाज ग़र, कूद भगे बिन लाज
वाह्ह वह्ह्ह्ह मजा आ गया दोहे पढ़ के सच में चुनावी माहौल में यही सब तो हो रहा है.बहुत- बहुत बधाई इन शानदार दोहों के लिए|
आदरणीय राजेश मृदुजी, क्या सुन्दर वातावरण रच दिया आपने !
इन छंदों के मर्म में विद मलाइस टुवार्ड्स वन एण्ड ऑल की तरंगें ही आलड़ित हैं. :-))
सादर आभार आदरणीय.
रचना आपको रुचिकर लगी, मुझे भी बल मिला. हार्दिक धन्यवाद भाई जितेन्द्रजी.
सादर धन्यवाद आदरणीय गिरिराजभाईजी.
बहुत ही धांसू दोहे हैं, ऐसे दोहों को पढ़ने का अपना ही आनंद है । यह आनंद ठीक वैसा ही है जब आम के बागान में उस वक्त जाने से मिलता है जब मंजरियों की मिठास पत्तों पर निढाल पड़ी रहती है और पागल हवा उसे यहां-वहां ढूंढती थक कर घास पर लेट जाती है, सादर
चुनाव के सामने आते ही सभी नेता व् दल अपनी उधेड़-बुन में लग जाते है, चुनाव नही हुआ मानो नौटंकी हो गयी. आपका एक -एक दोहा इस नाटक की पोल खोल रहा है , हार्दिक बधाई आपको आदरणीय सौरभ जी
आदरणीय सौरभ भाई , सटीक चुनावी दोहों की रचना की है , बहुत बढ़िया , मज़ा आगया॥ बधाइयाँ ॥
नाटक के इस मंच पर, पाया जोकर रोल
उलटबासियाँ चेंप कर कहता ’खोला पोल’ -- बहुत पसन्द आया , ढेरों बधाइयाँ ॥
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