घनाक्षरी
आया मैं तो कुम्भ में कि, पाप कुछ कटायेंगे,
संगत में साधुओं के, पल दो बितायेंगे ।
पूजा और ध्यान संग, मन भी तो शुद्ध होवे,
संगम के तट पर, डुबकी लगायेंगे ।
भीड़-भाड़ मेला-ठेला, गिर पड़ीं बूढ़ी माता,
फौरन उठाया सोचा, पुण्य ही कमायेंगे ।
माता जी भी खुश हुईं, बोल पड़ी धन्य-धन्य,
मुझे जो उठाया- तुझे प्रभु जी उठायेंगे ||
पिछला पोस्ट : हास्य घनाक्षरी - 1 / गणेश जी बागी
Comment
हा हा हा हा सही है सर ....आप ने हमें हसा हसा कर किया पागल ....भगवान ....आपको ........... :)
....यूँ ही अच्छा लिखने कि प्रेरणा दें
आदरणीय सर ..मेरी तो हंसी बंद होने का नाम नही ले रही ..:).
मुझे जो उठाया- तुझे प्रभु जी उठायेंगे ||..बहुत खूब...बधाई स्वीकारें सर..
हाहाहा, अब कुम्भ में बूढ़ी माताजी को उठाने से पहले....बागी जी आप तो ज़रूर ही डरेंगे ..हाहाहा
सुन्दर हास्य घनाक्षरी पर हार्दिक बधाई. सादर.
भीड़-भाड़ मेला-ठेला, गिर पड़ीं बूढ़ी माता,
फौरन उठाया सोचा, पुण्य ही कमायेंगे ।
माता जी भी खुश हुईं, बोल पड़ी धन्य-धन्य,
मुझे जो उठाया- तुझे प्रभु जी उठायेंगे ||
आदरणीय गणेश सर हार्दिक बधाई|
:-)))
प्रभु हम जैसों को वाकई ऐसे-ऐसों के ’कहने’ पर ’उठा’ रहे हैं.. . हा हा हा.. .
बढिया प्रयास और उत्तम परिणाम, गणेश भाई. बधाई हो बधाई.
हा.हा..हा..हा.. अत्यंत आनंददायक घनाक्षरी प्रस्तुत की आपने आदरणीय! मुझे जो उठाया तुझे प्रभु जी उठाएंगे.. :-))) ऐसे ही एक मेरे मित्र हैं जो अक्सर कहा करते हैं कि- "भगवान आपका भला करे लेकिन......" :-)))
सादर,
हा हा हा हा अंत तो वाकई ग़जब ढा गया सर जी
प्रभु जी उठाएंगे ..........
मुझे जो उठाया- तुझे प्रभु जी उठायेंगे || हाहाहा क्या कहने इस हास्यरसास्वादन हेतु हार्दिक बधाई|
आदरणीय गणेश जी,
सुन्दर हास्य-व्यंग्यकाव्य के लिए साधुवाद।
विजय निकोर
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