For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

3 क्षणिकाएँ....

लीन हैं
तुम में
मेरी कुछ
स्वप्निल प्रतिमाएँ
देखो
खण्डित न हो जाएँ
ये
पलकों की
हलचल से

...................

गहनता में
निस्तब्धता
निस्तब्धता में
अलौकिकता
अलौकिकता में
मौलिकता
स्पंदन जीवित रहे
निस्तब्ध
अलौकिक
मौलिकता के
विलीन होने के बाद भी

..............................

रात,सनक, मयंक
और
तमन्नायें
चरमोत्कर्ष की
वेदना का पर्याय बनीं
उनके
चले जाने के बाद

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 768

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on November 19, 2018 at 5:01pm

"आदरणीय  vijay nikore जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 16, 2018 at 5:27pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन आपकी मुक्त कंठ से की गयी प्रशंसा का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। आपकी हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रिया ।
सर बड़ी ही ख़ूबसूरती से आपने क्षणिका को शेर में तब्दील किया है। आपका दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on November 16, 2018 at 5:24pm

आदरणीय शेख़ उस्मानी साहिब, आदाब ... सृजन आपकी मुक्त कंठ से की गयी प्रशंसा का दिल से शुक्रगुज़ार है , शुक्रिया ।

Comment by Sushil Sarna on November 16, 2018 at 5:22pm

आदरणीय राज़ नवादवी साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी मुक्त कंठ से प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on November 16, 2018 at 5:22pm

आदरणीय क़मर जौनपुरी साहिब, आदाब ... सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on November 15, 2018 at 10:44pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,आपके लेखन की धार को देखकर अति प्रसन्नता हो रही है,तीनों क्षणिकाएँ बहुत उत्तम और लेखन का आला नमूना हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

आपकी पहली क्षणिका को शैर में इस तरह ढाला जा सकता है:-

'लीन हैं तुम में मेरी कुछ तस्वीरें देखो याद रहे

खण्डित न हो जाएं ये भी इन पलकों की हलचल से'

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 15, 2018 at 8:42pm

वाह। पहली क्षणिका का समाधान सा करती दूसरी बेहतरीन क्षणिका! किंतु परिदृश्य और परिस्थितियों अनुसार सवाल करती तीसरी बेहतरीन क्षणिका। हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना  साहिब।

Comment by राज़ नवादवी on November 15, 2018 at 1:50pm

अनुभूतियाँ उक्केरती हैं जो आपकी क्षणिकाएँ, खुले नभ में जैसे चमकें हैं रात को मणिकाएं ! बहुत सुन्दर आदरणीय सुनील सरना जी. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 10:53am
बेहतरीन रचना।
Comment by Sushil Sarna on November 14, 2018 at 6:33pm

"आदरणीय  narendrasinh chauhan जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
6 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service