गंगा कहती रहीं-
‘और तुम्हारे ज्ञानी गण
केवल पारब्रह्म का रास्ता ही नहीं बताते
जिस पारब्रह्म का मन्दिर सिर्फ आत्मा होती है
धरती पर वे बताते हैं मन्दिर कहाँ बनेगा!
और यहां से उठ कर
किन दिलों को तोड़ना है
सब का हिसाब बना रखा है
सब व्यवस्था कर रखी है
मानव मल का बोझ मैं ढो लूंगी
पर मानवीय क्रूरता के इस अथाह मल को
वे मेरे पानियों में फेंक आते है!
वे सब ज्ञानी गण! इतना बड़ा अहम् संजोये रखते हैं
वे वाद का कम प्रचार करते हैं विवादों का ज्यादा....!
तुम परम आत्मा की खोज करते हो?
परमात्मा की खोज करने वालों की मदद करते हो?
सुनो, सुनते हो अगर!
परमात्मा तुम्हारे शब्दों के ढेर के नीचे दबा पड़ा है!
आत्मा तुम्हारे ज्ञान के नीचे सिसक रही है!
अपरिचित स्थान पर जमा वे लाखों भक्त
और तुम जानते हो
वह लाख़ों भक्तों की भगदड़!
वे सहकते प्राणि!
तुम लोग भूल जाते हो हर बार मैं नहीं भूलती.
मानव इतना तुच्छ है तुम्हारे लिये!
मानवता इतनी छोटी है क्या?
या तुम्हारे व्यक्तिगत अभिमान की
तुम्हारे स्वार्थमय अभियान की,
तुम्हारी सनक की जनून की
साधन मात्र!
गंगा अस्फुट वाणि में कहती रहीं.
ज्ञानी भावुक हो गया
कुछ बोलते न बना
वहां से उठ खड़ा हुआ
उसे डर लगने लगा कि वहां बैठा रहा
तो मानवीय मल का
या मानवीय मन का
अपने व्यक्तिगत स्वार्थमय मनन का
कोई हिस्सा छोड़ देगा गंगा जी में घुलने के लिये!
अभी तक कुछ धारा तो बची है-
साफ़! स्वच्छ! निर्मल!
अभी तक कुछ ज्ञान तो बचा है-
शुद्ध! शाश्वत! महान्तम सत्य!
मानवीय कुण्ठायों, मानवीय अहम्, और मानवीय मन से अप्रभावित!
जो प्रकृति के नियमों के अंत्रगत ही अंतस् में उतरा
और जैसा आया वैसा बांट दिया गया
तथ आगत!(जैसा आया)
तथागत!! (वैसा गया)
पर कुछ कहते न बना
वहां से उठ खड़ा हुआ
पहला प्रवचन दिया-
‘चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें’
‘चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें. महानुभाव!
शाश्वत गंगा केवल पानी की गंगा नहीं
शुद्ध शाश्वत सत्य की गंगा
अजी... आप हरिद्वार के पास,
हरिद्वार इलाहाबाद संगम के पास
से हो कर चल दिये वापिस
अपने घर अपने कारोबार!
आइये थोड़ा उत्तर दिषा में भटकें!
आइये शाश्वत गंगा की खोज करें!
कहां तक चलेंगे आप? देहरादून .... गंगोत्री या गौमुख तक!
गंगा जी का उदगम् स्थान!
अजी रुकिये मत. थोड़ा और उपर चलें!
गंगा जी यहां भी शाश्वत नहीं.
यहां भी बरतन डुबाते हैं लोग, हाथ भी.
थोड़ा और उपर चलें!
वहां यहां स्फेद बर्फ की चादर बिछी है!
स्फेद रुई सी बर्फ!
या बरखा की हलकी फुहार!
ज़रा चेहरे पर लगने दें!
चेहरे पर, देह पर, आत्मा पर!
ज़रा उपर आसमान की ओर देखें!
आसमान से उतरती वर्षा को देखें!
वहां से अविरल गंगा जी धारा बह रही है!
आसमान से उतरती गंगा!
स्वर्ग से धरती पर आती गंगा!
शुद्ध शाश्वत गंगा!
ऋग्-वैदिक व पौराणिक गंगा!
युगों युगों से बहती गंगा!
वह मानव मल रहित गंगा!
केवल अपना तेज लिये!
शायद कहेंगे आप-
यह स्वर्ग से आती गंगा!
अरे ...
वर्षा ही तो वह शुद्ध शाश्वत गंगा है
जिसका दर्शन जिस का अहसास
मैं अपने घर की मुण्डेर पर ...टैरेस पर,
आषाड़ ...श्रावण ....भादों में,
साल के बहुत सारे दिन, मैं करता हूं!
मेरे तो पास है यह गंगा!
वर्षा ही तो है यह गंगा
यह शुद्ध शाश्वत गंगा!
और मैं गंगा ....वह पवित्र नदी की खोज में
पवित्र नदी को मलिन करने
पहुंच जाता था, हरिद्वार ...काषी .....संगम!!!
(इति प्रथम अंक)
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
धन्यवाद सौरभ पांडेय जी, आप के स्वरूप में मुझे रचना का सही मूल्यांकनकर्ता मिला है। आप के विचारों व मार्गदर्शन का सम्मान करता हूँ। कृपया ऐसा सहयोग बनाये रखें। मैं तो प्रयतनरत हूँ कि रचना बहु -आयामी हो और चर्चा भी। हृदय से बयान कर रहा हूँ लेकिन उचित आलोच्ना स्मालोचना का सम्मान करूंगा।
गंगा की पौराणिकता से जो प्रतीक लिया गया है वह रोचक है. वायव्य अनुभूतियों को शब्द देना सहज नहीं होता कभी.
चर्चा को बड़े कैनवास पर लेजाने के लिए बधाई..
धन्यवाद ram shiromani pathak जी
आप की टिपणी का शुक्रिया
धन्यवाद Dr. Mohan जी
आप की टिपणी का शुक्रिया
धन्यवाद Yogi Saraswat जी
वर्षा ही तो वह शुद्ध शाश्वत गंगा है
जिसका दर्शन जिस का अहसास
मैं अपने घर की मुण्डेर पर ...टैरेस पर,
आषाड़ ...श्रावण ....भादों में,
साल के बहुत सारे दिन, मैं करता हूं!
मेरे तो पास है यह गंगा!
वर्षा ही तो है यह गंगा
यह शुद्ध शाश्वत गंगा!
और मैं गंगा ....वह पवित्र नदी की खोज में
पवित्र नदी को मलिन करने
पहुंच जाता था, हरिद्वार ...काषी .....संगम!!!
हमने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर अपने जीवन जो सँभालने वाली गंगा तक को भी नहीं बख्श ! आपने बहुत सुन्दर शब्दों में गंगा की व्यथा को लिखा है
डाक्टर साहिब,
आप जी की रचना शक्ष्ताकार है,मनुष्य का खुद से और उसकी भटकना से जिस के कारण बहुत से विकार पैदा हो रहें है, इस कविता में आप जी ने अंत में उन के हल की तरफ भी इशारा किया है -बहुत बहुत बधाई ऐसी रचना को पाठकों के समक्ष रखने के लिए
adarneey badi gyanvardhak baat kah di apane.....hardik badhai
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