For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (3)

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें में सब अतिथि  blogers का स्वागत है. आप के पर्संसात्मक comments का धन्यवाद यह एक लम्बी काव्या कथा है कृपया बने रहें. कोशिश करूंगा आप को निराश न करूं. यदि रचना बोर करने लगे तो कह देना. 

Dr. Swaran J. Omcawr

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (3)

गंगा कहती रहीं- ज्ञानि सुनता रहा

‘तुम इतना ताम-झाम करते हो!


इतनी यातायात, इतनी संचार व्यवस्था!


इतनी मोटर गाडि़यां!


मेरे पानियों पर, मेरे किनारों तक


उन अनजान भक्तों को लाने के लिये!


ज़रा सोचो एक दिन में कितने!


एक साल में कितने!


और कितनी सदियों तक!


उफ कितना परिश्रम करते हो


केवल एक सरल सी शिक्षा 


‘कि तुम परम आत्मा के अं हो’


जो न जाने कितनी बार दोहराई गई है


इतने मानव इतना मानव मल


मेरे बच्चे! केवल मानव मल की बात नहीं कर रही, उसे मैं ढो लूंगी.


वे तन का मैल फेकें या मन का,


इसकी भी परवाह नहीं!


पर इतना यातायात! इतना ताम-झाम!


इतनी प्लास्टिक!


इतने दिये! इतनी बातियां!


इतने फ़ल-फूल पूजा समग्री!


हस्तनिर्मित देवी देवों की प्रतिमायें!


जिन्हें मैं बार बार किनारों पर फेंकती हूं


इन सब से मैं मानती हूं कि रूठती हंू!


मैं रूठी हूं यह बताने के लिये क्या बाढ़ लाउं?


कोई पूछता है?


फिर इतने लोगों की इतनी गाडि़यां!


उन सब के कल-पुर्जा गृह, वे सारे कारख़ाने!


सौंदर्य-प्रसाध्नों की,


जूतों की चप्पलों की बड़ी बड़ी फैक्टरियां!


उन से निकलता रासायणक ज़हर!


जाता है मेरे पानियों में


तो क्या हाल होता है मुझ में बसे मेरे प्राणियों का?


भारत भर में ही नहीं,


विष्व भर में मैं मरते प्राणि की प्यास बुझाती हूं!


पर मैं स्वयं प्राणि की मृत्यु का कारण बनूं!


मुझ आभागिन को क्यों पापों की भागिन बनाते हो?

गंगा की मूक वाणि ज्ञानी सुनता रहा.


उस के कानों में रस नहीं पिघला सीसा डल रहा था शायद!


जो दे रहा था उसे असहनीय दर्द!


गंगा कहती रहीं-

(शेष बाकी ....)

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 545

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 2, 2013 at 6:16pm
धन्यवाद सौरभ पांडेय जी, बड़ी सशक्त व ज्ञानोचित शब्दावली में व्याख्या की आपने। आप ने गंगा बिम्ब के भीतरी सत्य को उजागर किया, गंगा को माँ संस्कृति कहा, गर्भधारिणी व चिर्गर्भिनि  कहा। वाह! मेरे साधारण शब्दों को अगाध व गहन अर्थ प्रदान किये। 
उचित कहते हैं आप- हमारा ज्ञान जैसे जैसे तकनीकी  व विज्ञानिक होता जा रहा है हमारा  जीवन सतही होता जा रहा है। हमारी सांस्कृतिक व्यवस्था, हमारा अध्यातम हमारी धरोहर सब हमारे सतही जीवन की भेंट चढ़ गए हैं।
शिक्षा व भौतिक प्रगति के नाम पर हम पृथ्वी को लूटने व बर्बाद करने का सामान जमा कर रहे हैं।
आप का पुनः धन्यवाद।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 2, 2013 at 5:26pm

गंगा की व्यथा को गंगा से सुनना..

हम जब तक तथाकथित ’अशिक्षित’ और ’असभ्य’ थे, ’पुरातनपंथी’ थे, गंगा हमारी माँ थी. गंगा सदा गर्भधारिणी रही. असंख्य जन्मा रही. हमारी तथाकथित शिक्षा ने हमें ज्ञानवान क्या बनाया हमारी सांस्कृतिक माँ निरा नदी भर रह गयी. ऐसी इकाई जो बहते पानी से भरी होती है और हमारे उच्छिष्ठ को प्रवाहित कर सकती है.

यहीं से हमारा और हमारी सांस्कृतिक माँ से मानसिक विभेद प्रारंभ हुआ. कल की चिरगर्भिणी आज ऐसी है कि अपने पुत्रों से तर जाने तक की अपेक्षा से बाहर हो गयी है.

गंगा व्यथा-कथा के लिए साधुवाद. ..

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 17, 2013 at 8:53pm

धन्यवाद केवल पर्साद  जी 

मैं आप के लिए आदेश करू ऐसा क्यों कहा आपने 
आप मेरे सहधर्मा साथी लेखक हो 
यूं अगर कोई परा भौत्की आदेश हम सब के लिए है तो वह धरनि पर मनुष्य के लिए बेहतर  जीवन शैली ढूँढना 
Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 17, 2013 at 8:47pm

धन्यवाद लाडिवाला  जी 

महत्वपूरण बात कही आपने सर्व पाप नाशिनी गंगा कैसे पाप की भागी हो सकती है 
ऐसे हमारे दरया personified  देवी देव हैं 
लेकिन हम अपने स्वार्थ से उन्हें अपना लक्ष नहीं लक्ष का  वाहन समझ लिया है 
Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 17, 2013 at 8:41pm

Thanks Coontee Mukherji

aap ne kavita ko saraha yeh mere liye badi baat hai

fourth part of the series is ready please do visit. 

Swaran

Comment by coontee mukerji on March 17, 2013 at 12:53am

Dr Swaran ji kash ap jaise mane sabka ho, sab koi Ganga ki pukar  sunein.pata nahi log apna mail dhokar kaisa poonya ki asha karte hai.itne hriday grahee kavita ke liye apko dhaniavad.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 16, 2013 at 11:05am

"विष्व भर में मैं मरते प्राणि की प्यास बुझाती हूं!

पर मैं स्वयं प्राणि की मृत्यु का कारण बनूं! मुझ आभागिन को क्यों पापों की भागिन बनाते हो?"

गंगा नहीं पाप के भागीं तो वे मनुज ही होंगे जो मन से और तन से गंगा को प्रदूषित कर रहे है | वे सब भारत की 

संस्कृति विरासत को भी समूल नष्ट कर रहे है | अब ऐसे ग्यानी ध्यानी विद्वजन जो गंगा की मूक आवाज सुन 

ह्रदय परिवर्तन करे, को शासन प्रशासन की बागडौर दिलाने का कार्य जनता को करना होगा | ऐसे आलेख के लिए 

हार्दिक बधाई डॉ स्वर्ण जे ओमकंवर जी 

 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 15, 2013 at 10:23pm

आदरणीय डॉ स्वर्ण जे ओम्कार जी, हार्दिक आभार ! मैं आपके 'शाश्वत गंगा की खोज' में किस तरह काम आ सकता हॅू, आदेश करें! धन्यवाद सहित!

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 15, 2013 at 6:50pm

धन्यवाद Mohan Begowal ji

पर्दूषण दोनों में है गंगा में भी और ज्ञान में भी 

 
गंगा ज्ञान की भी है और जल की भी 
आप ने सही कहा मन व पर्यवरण के दोनों दूषित हैं
 
यह एक लम्बी काव्या कथा है कृपया बने रहें. 
धन्यवाद 
Comment by मोहन बेगोवाल on March 15, 2013 at 6:11pm

डाक्टर साहिब, 

आप जी ने बहुत ही अच्छे तरीके से मन व पर्यवरण के दूषित होने की बात को उठाया है, और इस के होने के कारणों की  तरफ भी इशारा किया ,आप का धन्यवाद 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अजय जी "
55 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"बहुत बेहतरीन ग़ज़ल। एक के बाद एक कामयाब शेर। बहुत आनंद आया पढ़कर। मतले ने समां बांध दिया जिसे आपके हर…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
Monday
Shabla Arora updated their profile
Monday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service