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1212 1122 1212 22

यूँ उसके हुस्न पे छाया शबाब धोका है ।।1

मेरी नज़र ने जिसे बार बार देखा है ।।

वफ़ा-जफ़ा की कहानी से ये हुआ हासिल।
था जिसपे नाज़ वो सिक्का हूजूर खोटा है ।।2

उसी के हक़ की यहां रोटियां नदारद हैं ।
जो अपने ख़ून पसीने से पेट भरता है ।।3

खुला है मैकदा कोई सियाह शब में क्या ।
हमारे शह्र में हंगामा आज बरपा है ।।4

निकल पड़े न किसी दिन सितम की हद पर वो ।
जो अश्क़ मैंने अभी तक सँभाल रक्खा है ।।5

मिले हैं फूल किताबों में आज फिर यारो ।
पता करें ये मुहब्बत का काम किसका ।।6

अब उनके बारे में चर्चा तमाम क्या करना ।
जो अपनी शर्तों पे इस ज़िन्दगी को जीता है ।।7

न घर से उठ सकी ईमानदार की अर्थी ।
ये किस के साथ खड़ा देखिए ज़माना है ।।8

हर एक ज़र्रा है रोशन ग़रीब ख़ाने का ।
अभी अभी तो मेरे घर में चाँद उतरा है ।।9

ये दिल है आज मुअत्तर सनम की खुशबू से ।
बहुत क़रीब से महबूब मेरा गुज़रा है ।।10

वो शख़्स फिर न मुहब्बत में डूब जाए कहीं ।
बहार आई है मौसम नया नया सा है ।। 11

-- नवीन

मौलिक, अप्रकाशित

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Comment by Ravi Shukla on June 16, 2020 at 2:55pm

आदरणीय नवीन मणि  जी अक्ष्‍छी गजल हुई बधाई 

Comment by TEJ VEER SINGH on June 13, 2020 at 6:55pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी। बेहतरीन गज़ल।

उसी के हक़ की यहां रोटियां नदारद हैं ।
जो अपने ख़ून पसीने से पेट भरता है ।।3

न घर से उठ सकी ईमानदार की अर्थी ।
ये किस के साथ खड़ा देखिए ज़माना है ।।8

Comment by Samar kabeer on June 12, 2020 at 6:52pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

जनाब रवि जी से सहमत हूँ,मगर आप सुधार कम ही करते हैं ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 12, 2020 at 6:35pm

आदरणीय Naveen Mani Tripathi साहिब, इस लाजवाब ग़ज़ल पर दाद और मुबारकबाद स्वीकार करें।

/निकल पड़े न किसी दिन सितम की हद पर वो ।
जो अश्क़ मैंने अभी तक सँभाल रक्खा है ।।5/
आदरणीय, इस शे'र के मिस्रा-ए-ऊला के लिए एक सुझाव देना चाहूँगा, अगर आप को उचित लगे तो इसे यूँ कहा जा सकता है:
1212 / 1122 / 1212 / 22
गुज़र न जाए किसी दिन सितम की हद से वो

इसके इलावा कुछ टंकण त्रुटियाँ इंगित करना चाहूँगा:
2. हुज़ूर
3. यहाँ, रोटियाँ
5. अश्क
9. रौशन
10. ख़ुश्बू

Comment by Dimple Sharma on June 11, 2020 at 11:11am

नमस्ते आदरणीय, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 11, 2020 at 10:12am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी, आदाब। 

शानदार ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।

शेअ'र नं 6 में आख़िरी अक्षर टाईप होने से रह गया है। दुरूस्त कर लें। 

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