For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मापनी 

२२१२ १२१२ ११२२ १२१२ 

 

प्यारी सी ज़िंदगी से न इतने सवाल कर,

जो भी मिला है प्यार से रख ले सँभाल कर. 

 

तदबीर के बग़ैर  तो मिलता कहीं न कुछ, 

सब ख़ाक हो गए यहाँ सिक्का उछाल कर.

 

पहले से कम नहीं हैं हमारी मुसीबतें, 

फिर से कोई नया तू खड़ा मत वबाल कर.

 

दिल में जगह बचे न अगर ख़ुद के ही लिए,  

इतने कभी रखो न वहम मन में पाल कर. 

 

शिकवा-गिला किया न ज़माने के सामने,

अपना ख़याल  कर कभी उनका ख़याल कर. 

 

मुरझा रहे हैं फूल तो कलियाँ उदास हैं, 

ख़ुश्बू मेरे चमन की तू फिर से बहाल कर. 

 

कैसे न हो यक़ीन  तेरी बात पर ‘बसंत’ 

तूने तो रख दिया है कलेजा निकाल कर.


"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 692

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 7, 2020 at 5:46pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया, सादर नमन स्वीकार करें 

Comment by नाथ सोनांचली on July 11, 2020 at 12:42pm

आद0 बसन्त कुमार शर्मा जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। इस पर रवि भसीन साहब और अमीरुद्दीन साहिब के प्रतिक्रिया से सीखने को भी मिला। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 7, 2020 at 11:08am

आदरणीय Dayaram Methani जी सादर नमस्कार , आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 7, 2020 at 11:07am

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 7, 2020 at 11:06am

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब आदाब , आपने सहीह कहा इसकी बह्र 221 / 2121 / 1221 / 212 है 

आपकी तरमीम का दिल से शुक्रिया 

बहुत कुछ सीखने मिल रहा आप लोगों से 

सादर नमन, इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें , बहुत बहुत शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 7, 2020 at 11:04am

आदरणीय अवि भसीन साहिब को आदाब, आपने सहीह कहा इसकी बह्र 

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
221 / 2121 / 1221 / 212 ही है 

जब हम सिमट के आपकी बाँहों में आ गए

लाखों हसीं ख़्वाब निग़ाहों में आ गए 

इस गाने को ही आधार मानकर यह ग़ज़ल कहि थी मैंने 

इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें सादर , शुक्रिया आपका  

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 7, 2020 at 1:09am

आदरणीय बसंत कुमार शर्मा

साहिब, जो बह्र आपने इस्तेमाल की है वो ये है:
मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
221 / 2121 / 1221 / 212

ये बहुत ही मशहूर बह्र है, और इसमें कई लाजवाब ग़ज़लें हैं, जैसे:
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा
(मिर्ज़ा ग़ालिब)

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है
इक शम्अ' है दलील-ए-सहर सो ख़मोश है
(मिर्ज़ा ग़ालिब)

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
अपनी ख़ुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले
(उस्ताद इब्राहिम ज़ौक़)

रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आप का दिल भी मिरी तरह
(हकीम मोमिन ख़ाँ मोमिन)

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया
(दाग़ देहलवी)

आपकी ग़ज़ल के तमाम अशआर इस बह्र के मुताबिक़ सहीह हैं, कृप्या तक़्तीअ करके ज़रूर देखियेगा।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 7, 2020 at 12:20am

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें।

आपने जो बह्र लिखी है उस बह्र के मुताबिक़ आपकी ग़ज़ल का एक भी मिसरा बह्र में नहीं है।

अलबत्ता आपने ग़ज़ल की शुरूआत जिस मिसरे से की है उस की तक़तीअ करने पर उस की बह्र 2212/121/121/1212 मालूम होती है, हालांकि इस बह्र के मुताबिक़ भी सिर्फ नौ मिसरे शैर 1 का ऊला, शैर 2 के दोनों, शैर 3 का ऊला शैर 5 के दोनों, शैर 6 के दोनों, और शैर 7 का सानी बह्र में हैं, इनके इलावा तमाम मिसरे बह्र से ख़ारिज हैं। ज़रा एक बार फिर से तक़तीअ और बह्र पर ग़ौर फ़रमाएं। 

चौथे शैर का मिसरा ए ऊला "दिल में जगह बचे न अगर ख़ुद के ही लिए" में लफ़्ज़ "अगर" की वजह से मिसरे का शिल्प गड़बड़ा गया है। इसे चाहें तो यूँ कर सकते हैं : "ख़ुद के लिए भी दिल में जगह न बचे कहीं"। 

 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2020 at 10:26pm

आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Dayaram Methani on July 6, 2020 at 9:14pm

 

प्यारी सी ज़िंदगी से न इतने सवाल कर,

जो भी मिला है प्यार से रख ले सँभाल कर. .......  आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी, अति सुंदर गज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service