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लिखना न मेरा नाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में
आयेगा कुछ न काम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।१।
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सबको पता है धूल से बढ़कर न मैं रहा कभी
ऊँचा भले ही दाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।२।
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सूरज न उगता भोर का तारों भरी न रात हूँ
ढलती हुई सी शाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।३।
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रावण बना दिया है मुझे प्यास ने हवस की यूँ
करना न मुझको राम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।४।
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चाहत न कोई नाम की रिश्ता अगर बना कोई
चलना मुझे अनाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।५।
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मुझको सफर मिला हैं अभी दूर चाँद देश का
होगा नहीं विराम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।६।
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
मौलिक.अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार
खुबसूरत गजल हुई
मुझको सफर मिला हैं अभी दूर चाँद देश का
होगा नहीं विराम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।६।- वसः
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आ. भाई अमीरुद्दीन जी, पुनः उपस्थिति के लिए आभार ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब,
मिसरे का भाव समझाने के लिए शुक्रिया जनाब।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, उसका भाव यह है कि अब राम जैसा सात्विक मत बनाना।
//जहाँ तक चौथे शे'र का सवाल है उसे आपके कहे अनुसार करने से उसका भाव बदल जायेगा । //
जनाब लक्ष्मण धामी जी अगर मिसरा बदलने से भाव बदल रहा है तो मत बदलिये मगर जो भाव है उसे बता तो दीजिए हुज़ूर
मैने पिछली टिप्पणी में भी यही जानना चाहा था "रावण बना दिया है मुझे प्यास ने हवस की यूँ
करना न मुझको राम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।४। इस शैर का भाव
ख़ुसूसन सानी मिसरे का भाव समझा देंगे तो बड़ी इनायत होगी। सादर।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति सराहना व सलाह के लिए हार्दिक आभार ।
जहाँ तक चौथे शे'र का सवाल है उसे आपके कहे अनुसार करने से उसका भाव बदल जायेगा । सादर...
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।
आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें।
कुछ टंकण त्रुटियां रह गयी हैं जैसे लफ़्ज़ 'ख्वाहिशों' में ख के नीचे नुक़्ता लगा लें,
'मुझको सफर मिला हैं' में 'सफर' को सफ़र तथा 'हैं' को 'है' कर लें।
//रावण बना दिया है मुझे प्यास ने हवस की यूँ
करना न मुझको राम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।// जनाब शैर के सानी मिसरे में आप क्या कहना चाहते हैं भाव स्पष्ट नहीं है।
आप चाहें तो सानी को यूँ कर के देख सकते हैं : "करता न होश काम तेरे ख़्वाहिशों के शह्र में" सादर।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।बेहतरीन गज़ल।
चाहत न कोई नाम की रिश्ता अगर बना कोई
चलना मुझे अनाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।५।
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