हम जरूरत के लिए विश्वास जैसे हैं
नाम पर सेवा के लेकिन दास जैसे हैं।१।
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सेज पर बिछने को होते फूल जैसे पर
वैसे पथ के पास उगते घास जैसे हैं।२।
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है हमारा मान केवल जेठ जैसा बस
कब तुम्हारे वास्ते मधुमास जैसे हैं।३।
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दूध लस्सी धी दही कब रहे तुमको
कोक पेप्सी से बुझे उस प्यास जैसे हैं।४।
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रोज हमको हो निचोड़ा आपने लेकिन
स्वेद भीगे हर किसी अहसास जैसे हैं।५।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई सुरेन्द्र नाथ जी, सादर अभिवादन । आपको गजल अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार ।
आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार ।
आ. भाई बसंत कुमार जी, सादर अभिवादन । आपको गजल अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आद0लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर'जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल हुई है। दाद के साथ मुबारकवाद पेश करता हूँ।
भाई लक्ष्मण धामी' मुसाफिर '
सादर प्रणाम
एक और उम्दा ग़ज़ल हुई है, दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें. सादर.
आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन । आपकी उपस्थिति व उत्साहवर्धन से लेखन सफल हुआ । इसके लिए हार्दिक आभार ।
कमियों की ओर ध्यान दिलाने हेतु पुनः आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' भाई, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें।
/दूध लस्सी धी दही कब रहे तुमको/
भाई, इस मिस्रे में कोई लफ़्ज़ (शायद 'दे') छूट गया है, और 'धी' को 'घी' कर लीजिये।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।बेहतरीन गज़ल।
रोज हमको हो निचोड़ा आपने लेकिन
स्वेद भीगे हर किसी अहसास जैसे हैं।५।
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