पनघट पोखर बावड़ी, बरगद पीपल पेड़
उनकी बातें कर न अब, बूढ़े मन को छेड़।१।
**
जिस पनघट व्याकुल कभी, बैठे थे हर शाम
पुस्तक में ही शेष अब, लगता उस का नाम।२।
**
पनघट सारे खा गया, सुविधाओं का खेल
फिर भी सुख से हो सका, नहीं हमारा मेल।३।
**
पीपल देखे गाँव का, बीते कितने साल
कैसा होगा क्या पता, अब पनघट का हाल।४।
**
पथिक ढूँढ नव राह तू, अगर बुझानी प्यास
पनघट ही जब ना रहे, क्या गोरी की आस।५।
**
सब मिल पनघट थीं कभी, बतियाती चित खोल
घर- घर नल से छिन गये, सुख के पल अनमोल।६।
**
अब भी कितने गाँव में, पसरी प्यास अथाह
पनघट की कहते तभी, बहुत कठिन है राह।७।
**
ऐसे कितने गाँव हैं, अब भी यूँ सरकार
कोसों नंगे पाँव चल, पनघट जाती नार।८।
**
नल ने घट जब से भरा, पनघट का पथ बन्द
पोखर नदिया बावड़ी, दिखता केवल गन्द।९।
**
तन - मन की बुझती रही, कैसे कैसे प्यास
कहता पनघट खो गया, लेकर यह इतिहास।१०।
**
मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई सुरेन्द्र नाथ जी, सादर अभिवादन । आपको दोहे अच्छे लगे यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार ।
आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन । आपको दोहे अच्छे लगे यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई बसंत कुमार जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई रूपम जी, गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।
ओबीओ परिवार में सीखने सिखाने की अद्भुत परम्परा कायम है । मैंने भी विद्वजनों के सानिन्ध्य में लेखनी को निरंतर प्रयास किया है । विद्वजनों के सुझावों के उजाले में आप भी ओबीओ परिवार को उत्तम रचनाओं का उपहार देंगे, यही कामना है । सादर...
आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी सादर अभिवादन। अच्छे दोहे सृजित हुए हैं।बधाई स्वीकार कीजिये
भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
सादर अभिवादन
पनघट पर इतने मनभावन दोहे लिखने के लिए हार्दिक शुभकामनाएँँ स्वीकार करें. सादर.
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । आपको दोहे अच्छे लगे यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई विजय शंकर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवरधन के लिए आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार
आनन्द आ गया दोहे पढकर
शानदार निर्वाह पनघट का
बधाई आपको
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन दोहे।
पीपल देखे गाँव का, बीते कितने साल
कैसा होगा क्या पता, अब पनघट का हाल।४।
ऐसे कितने गाँव हैं, अब भी यूँ सरकार
कोसों नंगे पाँव चल, पनघट जाती नार।८।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online